Posts

शक -: अज़ाब , ज़ुल्म और क़ातिल

Image
                         अफ़साना  ( शक  - : अज़ाब , ज़ुल्म  और   क़ातिल  ) कपुचलफारज कस्बे का एक बड़ा गॉव था । वहां अलग अलग जाति धर्म के लोग रहते थे आप अगर उसे छोटा हिंदुस्तान कह दें तो गलत नही होगा। लोग अपने अपने करोबार के हिसाब से रोज़ मर्रा के काम करते थे। कस्बे से लगभग मील भर की दूरी होगी उस गांव की, गांव को जाने वाला रास्ता बिल्कुल कच्चा था रास्ते में कंटीली झाड़ियां थी ऊंचे नीचे टीले अगर बारिश हो जाए तो जाना मुश्किल हो जाए । सफ़र के लिए बैलगाड़ियां चलती थी जो कि कस्बे से गांव तक आने के सात आने लेते थे , लेकिन उन बैलगाड़ियों पर सफर करना बहुत महंगा साबित होता था , जो कोई सवारी पर बैठता राह के गड्ढे उसे अगले आठ दिन तक बिस्तर से नहीं उठने देते थे। गाँव के शुरु में ही एक ताल था जिसमें सारे गाव का पानी आता था जो कि निहायत ही गंदा था लेकिन इकलौता ताल था इसलिए सभी को पसंद था। ज़मीन्दारी के लालच वाले  दौर में उसका सलामत रहना एक मोज्ज़ा ही लगता था क्योंकि उस गांव के मुखिया जी ने गांव...

क़ातिल कौन? लाला ? बच्चे ? भूख ?

Image
                    क़ातिल कौन ?  लाला ?  बच्चे ?  भूख ? हमारे यहां एक लाला है । नाम है स्लीतम दुबे । दुबे जी हमारे कस्बे के एक बहुत ही रईस , जमींदार और कारोबारी आदमी माने जाते हैं , दिखने में तंदुरुस्त है और हट्टे कट्टे भी । इन सब के बीच उनके अंदर एक और भी खास आदत है और वो है उनकी कंजूसी। मगर यह कंजूसपन आमतौर पर होने वाले कंजूसी से बिल्कुल परे था मतलब इसमें एक खासियत थी। खासियत यह थी कि यह सिर्फ उनके यहां काम करने वाले मज़दूरों पर लागू होता था । खुद तो मोटर गाड़ियों में घूमते , अपने खानदान का ख्याल भी बाकायदा एक जिम्मेदार मुखिया के तौर पर करते और उन्हें किसी भी चीज की तंगी ना होने देते यहाँ तक कि उनके ऐश के लिए कुछ भी कर सकते थे,मगर जैसे ही उनके कारखाने में काम करने वाले किसी मजदूर को उसकी तनख्वाह देने का वक़्त आता तब उनका वह कंजूस इंसान जागता और फ़िर ऐसी गजब की अदाकारी का मुज़ाहिरा करते कि सामने वाला कुछ बोल ही नहीं पाता। उनके कई सारे कारोबार हैं जिनमें उनका कारखाना भी है जिसमें लगभग 25 लोग अच्छे ओहदे पर ...

आखिर चाहिए.......कौन ? कितने ? और कैसे??

Image
    आखिर चाहिए ..........कौन  ?  कितने  ?  और कैसे  ??  (अफसाना ) एक लड़का था दुबला पतला छोटे बाल , काली आंखें , आम हालत में दिखने वाला नाम था सुकून । कहने को तो उसका नाम सुकून था मगर वह हर वक्त न जाने कहां गुम सुम सा रहता था । उसके दिमाग में हर वक्त कुछ ना कुछ चलता रहता , लगता था जैसे कुछ उधेड़बुन में लगा रहता है । मैं उस पर कई रोज़ से नज़र रख रहा था लेकिन हर बार वो उसी कैफियत में नज़र आता था । वही सुनसान मिज़ाज का मालिक । एक दिन मैंने उससे बात करने को सोचा, मैं जब उसके घर की तरफ आया तो वो अपने घर से निकल ही रहा था , मैंने उसे रोका और सलाम किया उसने भी बहुत अदब के साथ सलाम का जवाब दिया और खैरियत पूछी । उसका अखलाक अच्छा था । उसके अखलाक ने मेरे ऊपर असर किया और इसलिए मजीद उसके बारे में जानने के लिए मेरे अन्दर दिलचस्पी हुई , मैंने उससे कहा -" क्या हम थोड़ी देर बात कर सकते हैं ? तो जवाब में कहा-" जी जरूर " और हम दोनों एक बगीचे की तरफ चले गए जो कि हमारे कस्बे से सटा हुआ था । रास्ते में चलते चलते मैंने बातचीत शुरू की तो उसने भ...

मौत का जिम्मेदार कौन?

Image
                                                     खराब  वेंटिलेटर एक तरफ कोरोना अपना कहर सारी दुनिया पर बरपा रहा है और हमारे देश में भी यह  अपने पैर पसार रहा है तो वही दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में हमपान साइक्लोन ने भारी तबाही मचा दी है। यह वक्त इंसानियत के लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा है, मगर ऐसे मुश्किल दौर में भी कुछ लोग अभी भी लोगों की जानो के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनको यह समझ नहीं है कि इस वक्त किसी भी तरह का कोई गलत काम कितने लोगों की जान ले सकता है।  डॉक्टर्स के मुताबिक  हमारे सामने कोरोना से बचने के लिए एक तरीका था जो कि टेस्ट था। ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कराना ही सबसे ज्यादा जरूरी  है उसके लिए ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किट का होना भी आवश्यक है ।  टेस्ट किट मंगाई गई लेकिन बाद में कई सारे अखबार और कुछ चैनल ने भी रिपोर्ट दी की टेस्ट किट नकली हैं यह बात उस वक़्त की थ...

मैं मजदूर हूं

Image
मैं मज़बूर हूँ    मैं रात दिन मेहनत करता हूं उसी से कुछ कमा कर बच्चों का पेट भरता हूं मैं हर बीमारी और अनहोनी से डरता हूं चंद रुपए ही तो पूरे दिन में जमा करता हूं घर ले जाऊंगा बहुत सा राशन एक ही बार में ज्यादा एनिमेशन कमा कर यही सोचकर मैं अपने घर से दूर हूं मैं मजदूर हूं ........... मैं ........... मजदूर हूं मेरा एक घर है, सिर्फ एक ही दीवार है जिसमें उसी के सहारे घास की छत को मैंने किया तैयार है उसके नीचे एक तरफ को मिट्टी से बना चूल्हा है चूल्हे के बराबर से ही मेरी बेटी की गुड़िया का झूला है झूला तो बना लिया है उसने कहा है, लेकिन गुड़िया का इंतजार है कि वह कहती है कि सबसे बाबा लाएंगे गुड़िया क्योंकि वे मुझसे प्यार करते हैं मुझे उससे बात नहीं करनी चाहिए करने को तरसती रहती है जब भी बात करता हूं मुझे यही कहती है बाबा ....... कब आएगी मेरी गुड़िया ?? मैं तड़प जाता हूं, उसकी मासूमियत से और बहाने से बहला देता हूं गोद में उसको बिठाकर सिर को सहला देता हूं वो भी बहुत जहीन है मेरे आंसुओं को भांप लेती है मेरे दर्द को अंदर तक जांच पड़ती है ...

भूख और हम

Image
 दुनिया की रफ्तार थम सी गई है,  ऐसे में बहुत सारी  दिक्कतें हैं, जैसे- कारोबार की ,खानपान की, शिक्षा की  और दवाइयां आदि  । हम अपने मुल्क में बहुत कड़वी सच्चाई के साथ जी रहे हैं चाहे जितना भी इसको नजरअंदाज किया जाए लेकिन रिसर्च और रिसर्च  करने वाले इसको नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं। और वह कड़वी सच्चाई भूख है।  भुखमरी का स्तर लॉक डाउन या कोरोना से पहले  अगर देखा जाए तो उसके हालात काफी खराब पहले से ही है और और अब इस मंदी के बाद हमारे देश पर भुखमरी किस कदर अपना असर डालेगी यह हम अपने घरों मैं सुकून से बैठकर नहीं समझ पाएंगे क्योंकि हमें लगता है हमारे पास सब है तो सब ठीक है  । हमें रोटी कमाने वाले मजदूर ,  मुश्किलों में वक्त गुजार रहे मजदूर , अपने घर को जाने  के लिए जद्दोजहद करने वाले  मजदूर सब बेवकूफ और पागल नज़र आते हैं ।  मैंने बहुत से लोगों के नजरिए पर लघु शोध किया और उसमें पाया कि 40% लोग  रेल हादसे में हुई  मजदूरों की मौत, पैदल यात्रा करने वालों में होने वाली मौतें ट्रक में हुई मौतें और  भूख से हुई मौतें उ...