मैं मजदूर हूं
मैं मज़बूर हूँ
मैं रात दिन मेहनत करता हूं
उसी से कुछ कमा कर बच्चों का पेट भरता हूं मैं हर बीमारी और अनहोनी से डरता हूं
चंद रुपए ही तो पूरे दिन में जमा करता हूं
घर ले जाऊंगा बहुत सा राशन एक ही बार में ज्यादा एनिमेशन कमा कर
यही सोचकर मैं अपने घर से दूर हूं
मैं मजदूर हूं ........... मैं ........... मजदूर हूं
मेरा एक घर है, सिर्फ एक ही दीवार है जिसमें
उसी के सहारे घास की छत को मैंने किया तैयार है
उसके नीचे एक तरफ को मिट्टी से बना चूल्हा है
चूल्हे के बराबर से ही मेरी बेटी की गुड़िया का झूला है
झूला तो बना लिया है उसने कहा है, लेकिन गुड़िया का इंतजार है कि
वह कहती है कि सबसे बाबा लाएंगे गुड़िया क्योंकि वे मुझसे प्यार करते हैं
मुझे उससे बात नहीं करनी चाहिए करने को तरसती रहती है
जब भी बात करता हूं मुझे यही कहती है
बाबा ....... कब आएगी मेरी गुड़िया ??
मैं तड़प जाता हूं, उसकी मासूमियत से और बहाने से बहला देता हूं
गोद में उसको बिठाकर सिर को सहला देता हूं
वो भी बहुत जहीन है मेरे आंसुओं को भांप लेती है
मेरे दर्द को अंदर तक जांच पड़ती है
और कहती है ..... ..........
बाबा
मैं भी तो तुम्हारी गुड़िया हूँ .......
वो जानती है मैं मजबूर हूँ
मैं मजदूर हूँ ........ मैं ........ ......... मजदूर हूँ
उसी छप्पर के तले मेरी माँ -बाप भी हैं जो बीमार है
कमजोर और बूढ़े हैं इसलिए चलने को लाचार हैं
टूटी खाट पर बेचारे लेटे रहते हैं
जो भी होता है लगभग उसे कहते हैं कि
कब हैं होगा?
कब होगा मेरा लाल उसे बुला दो
मेरे कलेजे को ठंडक दे दो उसे मिला दो
मां कहती है कि मेरा प्यारा कहां है
मेरी बुढ़ापे की लाठी का सहारा कहां है
मेरे वालिद जो बहुत खामोश से रहते हैं
मां की बातों को सुनकर सिर्फ रोते रहते हैं
मुझे याद है ......
मुझे याद है किस तरह से पाला उन्होंने कहा मुझको
खुद से पहले खिलाया निवाला मुझको
मुझे जब तन्हाई में बचपन की अपनी बादशाहत याद आती है मेरी
मां-बाप की यह हालत मुझे बहुत रुलाती है लेकिन
वो जानते हैं कि मैं दूर हूं
मैं मजदूर हूं .......... । मैं .......... मजदूर हूँ लेकिन ये
सब मुश्किलों में रब ने मुझे कुछ खास दिया है
मेरे हाथ में मेरी वफादार बीवी चानी का हाथ दिया है
मुट्ठी भी सुनी है उसकी ..... पैरों में चप्पल भी नहीं है
एक दुपट्टा है फटा उसे ही हिजाब बनाकर सर से लपेटे रहता है, ठंड से बचने को कंबल भी नहीं है
वो बेचारी कभी किसी चीज की ख्वाहिश नहीं करती
बीमार पड़ जाए तो भी मुश्किलों से नहीं डरती
वो खूबसूरत बहुत है, मगर आंखों की बगैर में। कमी है इसलिए चश्मा लगाती है
उसका एक गिलास टूटा हुआ है फिर भी इस्तेमाल किया जाता है जो
किस तरह से मेरे घर को चला रही होगी वह
कैसे पेट भरती होगी सबका, और क्या खा रही होगी वो?
बेटा जो गोद में है बिना कुछ खाए उसे दूध कैसे पिलाती होगी?
जब वह भूख से तड़पता होगा तो वह कैसे सुलाती होगी?
मैं जानता हूं कि इज्जतदार है वो किसी से मांगेगी नहीं
वो मेरी आबरू की हद को कभी फंगदेगी नहीं
जब कभी वो बात करती है तो सब कुछ ठीक बताती हैं
जल्दी आ जाओ कहती है
याद बहुत आती है
और फिर चुप हो जाती है
मुझे एहसास हो जाता है, अब उसके आंसू उस की हद में नहीं है
घर में आने वाली मुश्किलों से लड़ना अब उसके बस में नहीं है
मैं जब उससे कहता हूं कि मैं उन सब का मुजरिम हूं
तड़प जाती है
यह सुनकर चीख जाता है
रोती है
और समझाती है मुझे
कि मैं बेकसूर हूं
मैं मजदूर हूं ......... मैं ........... मजदूर हूं
अब सालों गुजर रहे हैं मैं घर जाना चाहता हूं
अपने माँ-बाप की खिदमत कर जन्नत कमाना चाहती है
मैं चाहता हूँ कि इस त्यौहार सब घर वालों के लिए नए कपड़े लेकर जाऊं
उन्हें मुद्दोंदत के बाद पेट भर खाना खिलाऊँ
वो मुझे देख कर लिपट जाएगी खुश हो
जाएगी।
फिर मैं बच्चों को बाप का
वालिदेन को औलाद का
और चानी को उसका हक दूंगा
तमाम खुशियां लाकर उनके सामने रख दूंगा लेकिन
........... लेकिन
एक मुश्किल है
मैं जब भी मालिक से हिसाब करने और जाने को कहता हूं
वो कोई ना कोई बात नहीं है बनाकर समझाते हैं और मैं मान लेता हूं
इसी टालमटोल में लंबे अरसे बीत चुके
अब तो घर से आए हुए कई मौसम भीग चुके
अब तो वो धमकाने लगे हैं
अपने वादे भी झूठलाने लगे है
मैं दुहाई दे देकर रोय रहता हूं
मुझे मेरी मेहनत की कमाई दे। दो यही कहना रहता है कि वह
कहता है कि तेरा कुछ भी नहीं है
चंद रुपए हैं और उसके अलावा कुछ भी नहीं है
मैं कौन हाल में यहां हार्ड करता हूं
रात दिन एक करके मैं काम करता रहता हूं
मैं खुदा से सवाल करता हूं क्या गरीबों का खून पीने के लिए उन्हें दौलत दी है
एक एक चीज का इनको ऐश दिया और कमजोरो के पसीने से बने शोहरत दी है
वो सुुन से अपने घर में है
उन्हें पता नहीं है ...... । थकान से हो चुका अब मैं चूर हूं
मैं मजदूर हूं ........ मैं ........ हूं मजदूर
अब मुझे घराना और भी याद आने लगा है
घर का हर एक शख्स रोजाना ख्वाब में आने लगा है
मैं कशमकश में हूं कि क्या करूं कैसे जाऊं
उनके लिए कुछ खरीदने को रकम कैसे लाऊं
उसने साफ कह दिया ....... दूंगा एक पाई भी तुझको नहीं
अगर ज्यादा एनिमेशन कहा तो देगा नहीं बर्तन और रजाई भी मुझको
इसी फिक्र की गहराई में मैं खो गया
अपनी फटी रजाई पर न जाने कब सो गया
आंख बंद होते ही देखा
बाबा लाठी के सहारे आ रहे हैं।
मुझसे कहा अपना ख्याल रखना और
अब हम जा रहे हैं
मैंने कहा .............. बाबा ..... बाबा ...... बाबा
और वो बस आगे को ही चलते रहे
अपनी आंसू भरी आँखें को हाथ से मलते रहे
मैं रो-रोकर बाबा को पुकारने लगा
नींद में ही जोर-जोर से चीखे मारने लगा तो
मेरी आंख खुली और मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई
खुदा से दुआ करने को दीद आसमान की तरफ उठाई
इलाही मेरे कुनबे की। हिफजत करना मेरी
मां बाबा को हमेशा सलामत रखना
बस तब से एक ..... एक बेचैनी सी तारीफ हो गई
बाबा की तबीयत को लेकर सोच जारी हो गई
अब मैंने सहज कर लिया था
को ही अपने गांव छोड़ दिया जाएगा
जो कुछ लोगों को बॉस करेगा वही रख लूंगा
सवेरा हुआ,
मैं फौरन मालिक के पास गया
अपना कंबल और सामान भी साथ साथ साथ
जमीन पर बैठ गया और कहा मालिक मुझ पर रहम करें
बाबा सख्त बीमार है मेरी हवाले मेरी रकम करें
वो अचानक करीब आ गए और बहुत तेज ठोकर मारी
मुझेको फर्श पर सर लगा मेरा और गश हुआ तारीफ़ मुझको
ठहाला खुद को और देखता रहा मालिक गालियों के जैसा कुछ कह रहा है
मुझे एहसास हुआ मेरे सर से खून बह रहा है
उन्होंने उन्होंने किसी भी तरह मुझे रकम ना देने की ठानी थी
मुझे लगा दिया कि शायद में भिखारी हूँ भीख मैंने पूछा था
और आखिर में मैंने कहा। साहब मदद कर दो जो कहना बेकार था
मैं बोला साहब
मैं परेशानी ही की बिना पर आपके हुजूर हूँ
मैं मजदूर हूँ .......... मैं .......... मजदूर हूँ
मैं अपना सामान हूँ वहाँ से निकल गए
मालिक के घर से निकलकर कमजोरी से पैर मेरा फिसलना पड़ा
मैं गिर गया था फिर उठा और चलना शुरू किया
सैकड़ों मील की मंजिल को पाने पैदल ही चलना शुरू किया
मेरा एक रुमाल था जो मैंने पेट से लपेट रखा था
कुछ रुपए थे जिनको बचाकर उसमें समेट रखा था
वह कुछ रुपए जमा किए थे मैंने,
पता क्यों है?
अपनी बेटी की गुड़िया के लिए
और जो बच जाएंगे से उससे चानी की चूड़ियों के लिए
मैंने
उन्हें अगुवाई करते हुए देखा बस पैंतालीस रुपया थे कई बार हैंडल कर देखा
मैंने उन पैंतालीस को दो हिस्सों में बांट कर
बीस बीस में रखा और पच्चीस को रुमाल में बांधकर रखा
यूं ही चलता रहता है और मां-बाबा को याद करता है
इसी तरह कई मील का सफर करता रहा
शाम हो गया अंधेरा छा गया और थकान भी होने लगी
एक ढाबा था खाना देख भूख मटर बढ़ने लगी।
सोचा थोड़ा खा लूं, लेकिन एक कसक सी दिल में उठने लगी
बेटी, बाबा, मां, और चानी की भूख मन में चुभने लगी
सोचा अब घर पहुंच कर ही सबके साथ खाना खाऊंगा
साथ रहेंगे और कहेंगे अब छोड़कर नाऊंगा थोड़ा
दूर ही चला गया अंधेरा में दो लोगों ने मुझे पकड़ लिया
एक पीट रहा था और दूसरे ने पीछे से जकड़ लिया
वो दोनों मेरी जेबों को टटोलने लगे
जो कुछ पास है हमें दे यह बोलने लगे
वो जेब के पैसे निकाल कर भाग गए
और जो बर्तन थे वो भी बीनकर साफ हो गया
मेरे पास बस ......
फटा कंबल था टूटी चप्पल और वो रुमाल था
जिसमें मैंने अपनी बेटी के हिस्से का माल था
मैं तकदीर पर रोता हुआ आगे बढ़ा
क्यों आज तक तो किसी से भी नहीं
फिर से क्यों?
यह हो रहा है सब मेरे साथ ही और सोचता हुआ
चलता है केवल एक सवारी रुकी,
ड्राइवर ने पूछा कहाँ जाना है ???
मैंने कहा घर .....
वो मुस्कुराया और समझ गया मेरा जो फ़साना है
वो भला आदमी था उसने पानी दिया खिलाया खाना था
तमाम रात का सफर तय करके उसने सुबह शहर में उतार दिया
जहाँ से पैदल ही मुझे जाना था
मैं खुश था मेरा गांव दूर नहीं है कदम तेज थे
जो भी कांटे रास्ते में थे अब वो फूलों की सेज थे
मैं गांव की सड़क पर आते ही भागने लगा
लंबी लंबी की दूरी को कम होने में काटने लगा
गांव के बाहर ही मेरा छप्पर था ,,,,, ,,,,,,,, यानी घर
मैं रुक गया था जैसे ही नजर उधर गई घर जिधर था
हाथ से चप्पल छूट गया कंबल भी नीचे गिर गया
मैंने चेहरे से खून और गर्द को साफ किया।
फ़िर सजदे में मेरा सिर गया
मैं उठा और अब थोड़ा करीब जाने लगा तो देखा
घर लोग थे भीड़ की शक्ल में,
कुछ आ भी समझ रहा था और नहीं भी अकल में
मैं डर गया घबरा गया
मैं डर गया घबरा कर आगे बढ़ने लगा
भीड़ ने। जब मैंने देखा तो उनके आंसुओं का सैलाब उमड़ने लगा
लोगों को हटाता हुआ मैं जब छप्पर तले आया तो
क्या ??
बाबा और मां को लेटे हुए उन्हीं की खाट पर पाया
चानी भी उनकी चारपाई के पास ही बेसुध लेटे हुए थी,
जो बेटी और बेटे को अपनी बाहों में लपेटे हुए था
बच्चा बिलख रहा था बाकी सब सो रहे थे
आज सब की सारी इतनी सारी परवाह क्यों। हो रहे थे
मैं बाबा की पायती को बैठा और पैर
दबाने लगा उन्हें हैरान कर देगा इसलिए धीरे-धीरे जगाने लगा
मगर ……।
लेकिन बाबा उठ नहीं रहे ......
शायद थक चुके होंगे
मां, बाबा, मां, बाबा, बाबा .......
किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा वे अब चले गए हौसला से
खुद को संभालो और इसे रब का फैसला समझो
मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि
वह कैसे मुझे अकेला छोड़ कर जा सकता है
मेरे ख्वाबों की जो इमारत पूरी उन्हीं से होती थी क्या उसे कैसे ढहा सकते थे
बाबा तो कहते थे मेरा शेर है तु तो ...। ..... तो
कैसे जंगल में मुझे तन्हा छोड़ कर जा सकते हैं
माँ कैसे मेरे जहान को वीरान बना देगी
उसने तो कहा था कि वो मेरे बेटे को अपनी जान बना देंगे
वो कैसे आखिर अपने लाल को अंधेरे में छोड़ सकते है
वो तो कहती है था .........
मैं उसकी आँखों का नूर हूँ
मैं मजदूर हूँ ............ मैं ........... मजदूर हूँ
मेरे सर से अब आसमान छिन हुआ था
सिर्फ आसमान ही नहीं सारा जहान छिनड था
तमाम लोगों ने दिलासा दिलाया मुझको,
और सारा वाक़या जो गुजरा सुनाया मुझको
बाबा भी और मां भी बीमार थी
चानी की तबीयत भी ठीक नहीं थी लेकिन उनकी खिदमत को हर मुमकिन तैयार थी
रात भर लोगों के घर मदद को भागती रही
मां और बेटी इधर-उधर जाती और सारी रात जागती बनी रहती थी
मैं बहादुर चानी और अपनी बेटी से लिपट कर रोना
चाहती थी कि उनके एहसानों के समुंदर में खुद को डुबाना
चाहती थी कि मैं चानी का सर था गोद में रखा और होश में लाना चाहा
बहुत तरह से उसकी आँखों को खोलना चाहा लेकिन
यह क्या?
चानी की नब्ज भी नहीं चल रही थी
उसके मुंह और नाक से हवा भी नहीं निकल रही थी
यही हालत जो मैंने बेटी की देखी
मेरी सूख चुकी आंखें खून से भर आई
लोगों को लगा था बेहोशी में वह वो
अपने सास-ससुर के कपड़े की आगोशी में है लेकिन
वो भी अब मुझे छोड़ कर जा चुके थे
मां बेटी भी इस दुनिया को छोड़ किसी और आलम की जा रही है थी
चानी यह क्या किया .................
चानी यह क्या किया तूने?
क्यों साथ जीने मरने का वादा भुला दिया गया?
तुझे खुश रखने की खातिर ही आ गई थी मैं
तू तो कहती थी तुम्हारा सर का साया था मैं
तू था तो थोड़े से पैसों में भी सब कुछ संभाल लेती थी
कुछोड सामान में भी सब को पाल लेती थी
अब क्या करूं मैं?
अब क्या करूं मैं क्या करूं अकेला तुज़ बिन
क्या सिर्फ़ पच्चीस रुपये में चार लोगों का
कफ़न आना है मुमकिन बँधे हैं हाथ
मेरे लाचार हूं और बहुत रंजूर हूं
मैं मजदूर हूं.......... मैं....... मजदूर हूँ
बिलआखिर लोगों की मदद से सब को दफनाया मैंने
बाबा,
मां,
बेटी और चानी की कब्रों को साथ बनाया मैंने
और अब मैं कब्रिस्तान में हूं
मैं अकेला तुम्हारी तुरबत पर नहीं आया हूँ
चानी मैं अपने साथ तेरे बेटे को भी लाया हूं
बस एक बात बता चानी मेरे कहने से उठी क्यों नहीं थी
बस इतनी सी बात तूने मेरी मानी क्यों नहीं थी
तू तो कहती थी .............
तुम्हारे ख्वाबों की मैं हूर हूं
मैं मजदूर हूं.................. मैं........... मजदूर हूं
हमारी जिंदगी बस छोटे दायरे में सिमट जाती है
हर उम्मीद बस भूख से ही बिखर जाती है
फिर भी हर बार हमें ही जुल्म सहना पड़ता है
क्या यह इसलिए होता है
क्योंकि हर गम पाकर भी में मसरूर हूँ
मैं मजदूर हूं................. मैं........ मजदूर हूं
मैं......... मजदूर हूं........मैं
मज़दूर हूँ ।
कलीम पाशा शादरान ✍
Artist/poet
Date -01/05/2020 + 02/05/2020
Friday/Saturday
Time-1:48 /11:35
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