घाटी
एक नन्हा अन्धा सदस्य बता रहा एक कहानी
किसी ज़माने में एक घाटी थी जिसमें अलग-अलग तरह के निवासी रहते थे जैसे- अंधे, काने, लंगड़े और आंखों वाले आदि।
घाटी के सभी सदस्य एक साथ मिलजुल कर रहते थे सारे काम एक साथ करते और प्यार से एक दूसरे का साथ देते थे चूंकि घाटी ने बहुत से जुल्म सहे थे इसलिए घाटी गरीब थी, मगर इतने कष्ट सहने के बाद भी घाटी तरक्की की ओर बढ़ रही थी सब अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करते थे इस तरह घाटी खुशहाली की तरफ अग्रसर थी।
घाटी को चलाने के लिए घाटी के लोगों ने आंखों वालों को चुना था,और आंख वाले अपने काम को पूरी तरह अंजाम देते। कमियां खामियां बहुत सारी उनके कामों में भी थी लेकिन फिर भी घाटी के सदस्य उन्हें तख्त पर बैठाए हुए थे क्योंकि सदस्यों को लगता था कि यह तख्त को अच्छे से यही चला सकते हैं ।
घाटी में एक जाति काने सदस्यों की थी वह आँख वालों को तख्त से गिरा कर खुद राजशाही करना चाहते थे, उन्होंने बहुत सी चालों से आँख वालों को गिराना चाहा मगर हर बार असफल रहे । काने सदस्यों ने सोचा क्यों ना अन्धों को अपनी तरफ करके उनका सहारा लिया जाए उन्हें पता था कि अंधे सिर्फ सुन सकते हैं वह सिर्फ वही करते थे जो उनसे कहा जाता था ।
और खास बात तो यह कि सबसे ज्यादा सदस्यों की संख्या घाटी में अंधों की ही थी, काने सदस्यों ने उनको नई-नई चालो से समझाना शुरू किया और उनको लंगडो और आँख वालों के खिलाफ भड़काया,
इन सब में सबसे ज्यादा लंगड़े सदस्यों के खिलाफ बोलकर उनसे दुश्मनी की नींव डाली उन्होंने अंधों के दिमाग में यह बात डाल दी कि लंगड़े तुम्हारे दुश्मन है ,आसपास की घाटियों की झूठी कहानियां बनाकर यह जाहिर कर दिया कि आने वाले वक्त में लंगड़े हम पर राज कर लेंगे इन बातों को सुनकर अंधों को लगने लगा कि हम लंगडो को खत्म करके पूरी घाटी में आराम से रहेंगे मगर उन्हें यह नहीं पता था जो उन्हें समझा रहा है वह काना है और काना दिमाग का शातिर होता है।
अंधों को लगने लगा कि आंख वाले भी लगड़ो के पक्ष में हैं।
अब अन्धे और काने उस दिन का इंतजार करने लगे जिस दिन सब लोगों की सभा बुलाई जाती थी आंख बालों में एक समूह ऐसे लोगों का था जो घाटी की तमाम मुश्किलें और सदस्यों की बातें तख्त वालों तक पहुंचाता था , घाटी के सदस्य उन पर पूरा भरोसा करते थे काने सदस्यों ने उन्हें भी विभिन्न प्रकार के लालच देकर अपनी और कर लिया था बस कुछ बाकी थे जिन्हें अपने काम से प्यार थाऔर वो ईमानदार थे वह उनके लालच में नहीं फंसे।
वो समूह अंधों को वही बातें बताता जो काने उनसे कहलवाते थे
आखिर वह दिन आ गया जब अन्धे, काने,कुछ लंगड़े और उनके साथ कुछ आँख वाले भी थे वह भी लालच की बिना पर आए थे, घाटी के तमाम सदस्य एक बड़े बरगद के नीचे बैठ गए और तख्त वालों को और तख्त वालों को तख्त से उतार दिया गया उनकी जगह काने सदस्यों को बैठा दिया गया, आंख वाले और लंगड़े इस बात पर भी खुश थे कि तख्त पर नया सदस्य बैठेगा तो नए काम करेगा और जो काम काने सदस्यों ने घाटी के लिए करने को कहा उसको पूरा करने का वक्त आ चुका था।
अंधे सबसे ज्यादा खुश थे उन्हें लगा कि काने हमारे लिए सब कुछ करेंगे ,
कानों शुरू शुरू में उन को खुश करने के लिए कई सारे काम किए थे । अंधे खुश थे उनके दिमाग में बस यही था कि लंगडो को खत्म किया जाएगा। समय बीतता गया घाटी की तरक्की की रफ्तार धीमी होने लगी आँख वालों ने जब देखा कि घाटी तो कमजोर हो रही है तो उन्होंने आवाज उठाई।
जो पहले तख्त पर बैठे थे उन्होंने भी मौन धारण कर लिया था लेकिन काने सदस्य जो अब तख्त पर थे उस समूह को कुछ ऐसा कहने को कहते जो लंगड़ा से कानों की दुश्मनी को बढ़ावा देता था घाटी के सदस्यों का काम बंद होने लगा और देखते-देखते उनके बच्चे भूख से तड़पने लगे, काने सदस्यों को पता था कि अंधों को किस तरह बेवकूफ बनाया जा सकता है कानों को अगर कोई जरा भी बात कहता तो अंधों को उसका बहुत बुरा लगता इतना यकीन करने लगे थे ।
काने यह भी जानते थे कि उनके सीधेपन का फायदा उठाकर उन्हें उस हर बात से दूर रखा जा सकता है जिससे भविष्य में अंधे ही सवाल पूछना शुरु ना कर दें । बेचारे अंधे गरीब थे और इसी कारण उनमें शिक्षा की कमी थी मगर उनके पास ताकत थी वह तख्तापलट कर सकते थे।
समय बढ़ता गया घाटी के हालात बद से बदतर गए थे कानो ने अंधों के दिमाग पर इतना जहर फैला दिया था कि अंधे खाना मांगने की जगह लंगड़ो और आंखों वालों को नुकसान पहुंचाने की मांग करते वह यह तक भूल गए थे की भूख दुश्मनी से नहीं रोटी से मिटती है। दुश्मनी के इस जहर ने उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की भी परवाह तक को भुला दिया था , कि वह आगे चलकर घाटी के लिए क्या करेंगे और अपनी जिंदगी कैसे गुजारेंगे।
समय बीतता गया इसी दौरान घाटी में एक बवा फैल गई जो किसी के चेहरे या घाटी की हदों को देखकर नहीं फैली थी वह हर जगह फैलती जा रही थी आसपास की घाटियों में भी लोग मर रहे थे
काने सदस्यों को लगने लगा कि घाटी उनसे सवाल करेगी तो उन्होंने उस बवा को घाटी में लाने का जिम्मेदार लंगडो को ठहरा दिया, अंधों ने जब सुना तो बिना सोचे समझे लगडो को पीटना शुरू कर दिया और उनके साथ बुरा सुलूक शुरू कर दिया जबकि वबा आसपास की तमाम घाटियों में तबाही मचा रही थी तमाम घाटियां उस वबा से बचने की तरकीबें सोचने में लगी थी मगर उस घाटी में सदस्य एक दूसरे से नफरत निभाने में लगे हुए थे हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते चले गए अब अंधों समेत घाटी के सदस्यों के पास भोजन की किल्लते बढ़ने लगी और घाटी के सदस्य भूख से मरने शुरू हो गए ।
बच्चा यह बात बताकर रोने लगा शायद वह भी भूखके नाम से रोया । इस नफरत की आग में उसके मां-बाप इस संसार को छोड़कर जा चुके थे जो अकेला अपनी चौखट पर बैठा हुआ इंतजार कर रहा था और लेखक को यह दास्तान सुना रहा था।
उसके कुछ सवाल थे।
क्या कोई आएगा जो घाटी के सदस्यों के दिलों से आपसी नफरतों को दूर करेगा ?
क्या कोई इस वबा से हमें बचाएगा ?
घाटी फिर से चमन कब बनेगी?
फिर से खुशहाली वापस आएगी,,,, यह कहते-कहते चुप हो गया दीवार से पीठ लगाकर बैठ गया और आंखें बंद कर ली लेखक ने जब उसे उठाया कि आगे की कहानी सुनाओ तो उसे पता चला कि वह बच्चा अब इस दुनिया से जा चुका है अपने मां-बाप के पास, शायद भूखा था इसलिए अपने साथ बाकी कहानी भी ले गया जो अभी सुननी बाकी थी।
नफरत ने उसका पेट नहीं भरने दिया
कलीम पाशा✍
मुसव्विर/शायर
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