शक -: अज़ाब , ज़ुल्म और क़ातिल

 

                       अफ़साना 

( शक  - : अज़ाब , ज़ुल्म  और   क़ातिल  )


कपुचलफारज कस्बे का एक बड़ा गॉव था । वहां अलग अलग जाति धर्म के लोग रहते थे आप अगर उसे छोटा हिंदुस्तान कह दें तो गलत नही होगा।

लोग अपने अपने करोबार के हिसाब से रोज़ मर्रा के काम करते थे। कस्बे से लगभग मील भर की दूरी होगी उस गांव की, गांव को जाने वाला रास्ता बिल्कुल कच्चा था रास्ते में कंटीली झाड़ियां थी ऊंचे नीचे टीले अगर बारिश हो जाए तो जाना मुश्किल हो जाए ।

सफ़र के लिए बैलगाड़ियां चलती थी जो कि कस्बे से गांव तक आने के सात आने लेते थे , लेकिन उन बैलगाड़ियों पर सफर करना बहुत महंगा साबित होता था , जो कोई सवारी पर बैठता राह के गड्ढे उसे अगले आठ दिन तक बिस्तर से नहीं उठने देते थे।

गाँव के शुरु में ही एक ताल था जिसमें सारे गाव का पानी आता था जो कि निहायत ही गंदा था लेकिन इकलौता ताल था इसलिए सभी को पसंद था।

ज़मीन्दारी के लालच वाले  दौर में उसका सलामत रहना एक मोज्ज़ा ही लगता था क्योंकि उस गांव के मुखिया जी ने गांव के सभी तालाब बेच खाए थे और सुना था कि अब उनकी नजर इस पर भी थी।

खैर छोडिए किन लोगों की बात करने लगे हम, हा तो ताल से थोड़ा आगे जाने पर लगभग सात आठ झोंपडियों के बाद एक छोटा रस्ता बाईं तरफ़ को मुड़ता था।
मोड़ के बाद ही फ़िर बाई तरफ़ को मुड़कर कुछ दूर सीधे चलकर सामने ही एक इबादत खाना था, इबादत खाने से दाई तरफ़ चलने पर उसी के बराबर से ही एक टूटी झोंपड़ी थी जिसमें सात अफ़राद वाला एक खानदान रहता था।

उस झोंपड़ी का मालिक था लकीश।

लकीश के तीन बेटियाँ कइरा , लीहमा , वास्हाले और दो बेटे लैनकस और दिकार थे।
कइरा सबसे बड़ी थी उससे छोटा लैनकस उससे छोटी लीहमा और फ़िर दिकार था वास्हाले सबसे छोटी लड़की थी।

लकीश बहुत ही लालची और अजीब किस्म का इंसान था वो दौलत को बहुत पसंद करता था। दौलत इकठ्ठा करना उसका शौक था और यह शौक इतना ज़्यादा था कि अगर किसी अज़ीज़ के यहाँ कोई खुशी या गम का मौका आता तो कभी ना जाता बल्कि दिहाड़ि का इन्तेजाम करने निकल जाता ,यहाँ तक कि घर के किसी फर्द की अगर तबियत खराब होती तब भी वो पूंजी कमाने निकल जाता और वीवी जिसका नाम गिरनस था उससे कह जाता कि तबीब के पास जाकर दवा ले आए।

और शक्की इतना की अगर तबीब के पास दो बार चली जाए तो उसी से ताल्लुकात बताने लगता।
गिरनस जब भी नहाती तो कहता -"कोई आया होगा मिलने।"
कभी अगर वो खुश होती तो कहता -"क्यूँ मुस्कुरा रही है ?"
किसे याद कर रही है ?

खुद तो घर का ज़रूरती सामान खरीदता नहीं था और अगर गिरनस कहती तो कहता खुद ले आ , और मजबूरी में खुद चली जाती तो सब से कहता कि मेरी वीवी अय्याश है बाहर घूमती है गैर मर्दो से मिलने जाती हैं।

गिरनस निहायत ही खूबसूरत अक़्ल्मंद और नैक औरत थी, कमसिन थी तभी उसके वालिद ने ब्याह दिया, पाँच भाईयों की इकलौती , बहुत ही चंचल, हसमुख, जो उससे बात करता दीवाना हो जाता और साफ़ दिल इतनी कि कभी किसी से बुग्ज़ ना रखती थी।

मगर यह सारी आदतें लकीश को बिल्कुल पसंद ना थी। वो एक घटिया क़िस्म की सोच वाला इन्सान था। वो खुद तो दूसरी औरतों के पास कोठों पर जाता और गिरनस को आकर चिडाता कि आज वो किसी गैर औरत के साथ रात रंगीन करके आया है ।

इसके उलट अगर गिरनस अपने भाई से भी बात करती तो उस पर शक करके इलज़ाम लगाता और उससे कहता - "कि तेरे ताल्लुकात नाज़ायज़ हैं तेरे भाई से "।

यही वजह थी कि वो उसको मायके भी ना जाने देता।

सोचिए जो इन्सान सगे भाई से मिलने पर शक कर ले ' उसकी सोच क्या होगी ? और यह सिर्फ़ गिरनस के साथ नही होता था यही ज़ुल्म वो अपनी औलाद पर भी करता जिनकी उम्र अभी बचपन वाली ही थी ।

कइरा और लीहमा दोनों बेटियों को भाईयों से अलग रहने फरमान जारी था जो कि बड़ी बेटी है वो भी अभी छोटी ही थी उस पर शक करता था लैनकस को उससे दूर रखता घर को ही जैल बना रखा था, 

ना वो आपस में बात कर सकते थे अगर कोई ज़रा भी जवाब देता तो जानवरों की तरह सबको पीटता,और सब से झूठ कहता मुझे गलियां देती है मेरी औलाद।

लकीश ऐसी औलाद पर शक करता था जो कि सबसे जुदा थी जिनके चर्चे दूर दूर तक थे, ऐसी औलाद जिसको लोग देखते तो अल्लाह से दुआ करते कि हमारी औलाद ऐसी हो जैसी उसकी थी और उस औलाद को इतना ज़हीन और लायक बनाने में एक हाथ था ।

और वो हाथ था उनकी माँ गिरनस का ।

जो अपने शौहर का ज़ुल्म सहती, फ़ाको में अपना वक़्त गुज़ारकर भी बच्चों को इल्म हासिल करने के लिए भेजती सिर्फ़ इसलिए ताकि उसके बच्चे पढ़ लिख कर अच्छे इन्सान बन जाएँ , कामयाब हो जाएँ।

और दूसरा हाथ था उनके उस्ताद का जिसके पास गिरनस उन्हें इल्म हासिल करने भेजती थी।

जिसका नाम था मकली ।

मकली ऐसा मालूम होता था जैसे किसी अन्जान जगह से आया हो, बहुत ही कमज़ोर और पतला सा दिखता था । उसने लकीश के बच्चों को पूरे दिल से पढ़ाया,और सिर्फ पढ़ाया ही नहीं उनको एक जबर्दस्त इन्सान बनाया और उनको आअला दर्जे की तालीम हासिल कराई ।
मलकी को जितना भी आता था सब उसने उन बच्चों में डाल दिया।

सब उसकी तारीफ करते थे।

लेकिन लकीश एक निहायत ही वहशी इन्सान था वो अपने बच्चो को भी बुरी तरह पीटता और गलियाँ देता, मगर यह सब करने के पीछे वो अकेला ना था उसकी वजह थे उसके शरीक़ वो क्यूंकि जाहिल था , इल्म से दूर था इसीलिये उसके शरीक जो चाहते थे कि उसकी औलाद पढ़ लिख कर लायक ना बन जाएं वो उसको बुलाते और गिरनस और बच्चों पर बोहतान रख कर उसके दिमाग में ज़हर भर देते ।

यह सब वो इसलिए करते क्यूंकि वो उसकी औलाद खासकर कइरा से बुग्ज़ रखते क्यूँकी उनके सारे खानदान में कोई औलाद ज़रा फरमाबरदार ना थी ,

उनके अपने ही बेटों ने बहनो के साथ ताल्लुकात कायम कर रखे थे और ना ही बहने ऐसी थी वो भी रहती तो घर में थी लेकिन ऐब कोई ऐसा बाक़ी ना था जो उनमे ना था।

लकीश उनके उकसावे में आ जाता क्यूंकि वो जाहिल था जाहिल को उकसाना बहुत आसान होता है वो गुस्से में घर पहुंचता और सबको बुरी तरह पीटता बिना किसी वजह के ,
घर के हर फर्द में खौफ़ था।

गिरनस नही चाहती थी कि उसके बच्चे उनके खानदान की तरह बद्तमीज़ और जाहिल रहें इसलिए गिरनस ने अपने सारे बच्चों को मुश्किलात में भी पढ़ाने का ज़िम्मा लिया और तशद्दुद के बाद भी उसने बच्चों की पढाई जारी रखी ।

उसी दौरान एक दिन गिरनस के मायके से उसके चाचा थोड़ी देर के लिए घर पर आए किसी काम के लिए और चले गए लकीश घर पर नहीं था ।

शाम को जब लकीश वापस आया तो ठीक था खाना खाकर अपने भाईयों के घर बैठने के लिए चला जाता है लेकिन वहां से वापस आया और गिरनस को जाते ही पीटना शुरु कर दिया ।

बड़ी बेटी कइरा ने जब माँ को पिटते हुए देखा तो चीख पड़ी उसकी चीख सुनते ही लकीश गिरनस को छोड़ दिया और कइरा के सीने पर बैठकर गला दबाने लगा । इतना भारी भरकम शैतान उस दुबली सी लड़की पर बैठेगा तो मरना लाजिम है।

कइरा का दम घुटने लगा था हाथ पैर ठंडे होने लगे ऐसे में उसके हाथ में पास रखा जग आ गया जान बचाने के लिये कइरा के हाथ से उसके कंधे पर लग गया। लैनकस और गिरनस ने बड़ी मुश्किल से छुड़ाया तो कइरा के गले पर नाखून और उंगलियों के निशान छप गए , और वो नाज़ुक सी लड़की बेहोश हो गई।

लकीश गुस्से में ही झोंपड़ी से बाहर चला गया । बाहर जाकर लोगों से झूठ कहने लगा कि मुझे मेरी वीवी और बच्चों ने मारा है।
तमाम रिशतेदारों में भी झूठ आम कर दिया कि सबने मिलकर पीटा है।

लकीश एक बहुत ही झूठा इन्सान था अब उसने सब बच्चों की पढ़ाई पर भी पावन्दी लगा दी।

कइरा उस गांव की सबसे होशियार लड़की थी, जिसका ख्वाब बहुत ऊंचाई तक जाना था अपने बाप का नाम रौशन करना चाहती थी बाप के लिए रोती थी इस क़द्र जालिमाना बर्ताव के बाद भी।
उसका ख्वाब था कि वो एक बहुत बड़ी अफसर बने जो की अब कभी पूरा ना होने वाला था। अब उसके लिए उसका घर ही जैल था जहाँ उसको क़ैद कर दिया गया था।

कइरा अब उदास रहने लगी थी उस बच्ची की जिंदगी अब एक क़ैदी की तरह हो गई थी लकीश का ज़ुल्म अब भी कम न था वो अब उससे घर पर काम करने को कहता और अगर ज़रा भी ऊँच नीच हो जाती तो ज़लील करता और पीटता।

एक दिन कइरा झोंपड़ी में लेटी थी बहुत थक गई थी इसलिए उसकी आँख लग गई तभी उनके किसी शरीक ने छुप कर उसकी चारपाई पर किसी लड़के की कमीज़ रख दी,कइरा क्यूंकि थकी हुई थी उसकी आँख भी न खुल सकी और तभी थोड़ी ही देर बाद लकीश आ गया।

लकीश ने जब किसी अन्जान कपड़े को कइरा की चारपाई पर देखा तो आग बबूला हो गया और उस सोती हुई मासूम को मारना शुरू कर दिया वो चीखती हुई उठ पड़ी, पडोसी आ गए और उसको बचाया। लोगों ने उससे मालूम किया क्या माजरा है तो बोला-" इससे कोई मिलकर गया है" कोई लड़का।

और लोगों को वो कमीज़ दिखाने लगा इतनी भीड़ के सामने कइरा कुछ ना बोल पाई बस उसकी आँखो से आँसू गिरते रहे, और उसके साथ रोने वालों में दो लोग और थे गिरनस और लीहमा।

लोगों ने समझा बुझा कर मामला निपटाया, कोई कहता इसकी शादी कर दो ,कोई कहता भगा दो, कोई कहता निकाह कर दो अभी, यह सारी आवाज़े उसके कलेजे को चीरकर निकल रहीं थी लेकिन कुछ ना बोल सकी सब अपने अपने घर चले गए शाम हो गई। खानदान में किसी ने खाना नही खाया सिवाए लकीश के।

सब अपनी अपनी जगह सो गए कइरा भी लेट गई और रोती रही अब उसे मलकी की हर बात समझ आ रही थी कि उस्ताद बिल्कुल सही कहते थे वो कहते थे-

" कि कोई किसी का नही है ज़रूरी नही कि दुश्मन कोई बाहरी हो, जिंदगियां घरों से भी बर्बाद की जा सकती हैं "
वो अब जान चुकी थी यह घर उसके लिए नहीं है। इतने में गिरनस उसके पास आई और सरहाने बैठ गई।

उसके सिर पर हाथ फेरती रही और कुछ देर बाद बोली-
"बेटी यह दुनियां ऐसी ही है यहाँ बहुत कुछ सहकर भी इंसान को जिन्दा रहना पड़ता है "
उसकी हिम्मत बधाने लगी।
समझाने लगी कि सब्र करो हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा और जाकर सो गई।

कइरा अभी भी उसी दुनिया में थी जब वो पढ़ने जाती थी, जहाँ उसकी अज़मत को पहचाना जाता था जहाँ की वो मालिक थी क्यूंकि वहाँ वो सबसे होनहार थी।

जहाँ उसका उस्ताद मलकी उसकी होशियारी की क़द्र करता था ।

कइरा चाहती थी मलकी आए और उसको इस जाल से निकाल ले, और कहे जैसा कि वो हर बार कहता था कि - "डरना मत कभी किसी से भी, कैसे भी हालात हो घबराना मत, तु शेर है मेरा, काला शेर " यही अल्फाज़ तो उसे हिम्मत देते थे , इन्हीं अल्फाज़ को सुनकर ही तो वो नामुमकिन काम को भी आसानी से पूरा कर दिया करती थी डरती नहीं थी कभी,...........

लेकिन

आज वो सच में डरी हुई थी,

बस यही सब सोचती रही और सो गई ना जाने कब आंख लग गई ।

उधर उसका बाप लकीश उसका क़त्ल करने के मन्सूबे तैयार कर रहा था उसने तय कर लिया था कि कल ही ज़हर लाकर उसको खत्म कर देगा।

सुबह हुई सब उठ गए गिरनस उठी और निहार तोड़ने के लिए कुछ पकाया , लकीश भी उठ गया उसने नास्ता किया और इरादा दुरुस्त करने लगा कि आज वो काम तमाम कर देगा,

इतने में गिरनस ने लीहमा से कहा- " लीहमा कइरा को जगा दो कुछ खा लेगी उठकर "

लीहमा कइरा के बिछौने के क़रीब गई और आवाज दी - "बाजी उठ जाइए , कुछ खा लिजिए ।

लेकिन कइरा ने कोई जवाब ना दिया।
लीहमा ने फ़िर से हाथ लगाकर कहा- " बाजी उठिए माँ बुला रही हैं।"

लेकिन कइरा ने करवट तक ना ली।

लीहमा क्यूंकि वो भी तेज़ दिमाग थी वो कुछ महसूस कर रही थी और उसकी घबराहट बड़ रही थी लेकिन फ़िर भी उसने अपने दिल को समझाकर कइरा का कम्बल हटाया और देखा तो तो डर गई,कइरा की नाक से खून निकला हुआ था हाथ से चेहरे को छू कर उठाना चाहा और चिल्लाई - बाजी, बाजी, बाजी चीखती हुई गश खाकर गिर पड़ी।

क्यूंकि कइरा अब इस दुनिया से जा चुकी थी यानि मर चुकी थी कितनी टूट गई होगी ना वो जिसको जान निकलने का भी पता ना चला।

चीख सुनकर गिरनस , लैनकस, दिकार और वास्हाले झोंपड़ी में भागे और सब फूट फूट कर रोने लगे।
लकीश भी उठकर आया तो देेखा कि कइरा मुरझाई हुई बेजान पड़ी थी वो समझ गया था कि कइरा मर चुकी थी उसको मरा हुआ देख अन्दर ही अन्दर वो खुश हुआ क्युंकि जो वो चाहता था वही हुआ।

लोग आने लगे तो उनके सामने बनावटी आँसू दिखाता रहा। कफ़न आ गया गुस्ल दिया गया रोने और चीखपुकार से तमाम आलम गूँज उठा ।

लोग जनाजा उठाकर ले चले कइरा अब अपने असली घर की तरफ जाने लगी थी जहाँ उसकी नेकियां उसके अदब और अच्छाईयों का सिला मिलने वाला था।

तमाम लोग आखिरकार दफना कर वापस अपने अपने घर लौट चुके थे लेकिन एक शख़्स उसकी क़ब्र पर अभी भी रुका हुआ था। वो उससे बात कर रहा था और अब भी वही कह रहा था-"कइरा अब बिल्कुल मत डरना क्यूंकि अल्लाह अपने बन्दो से सबसे ज़्यादा प्यार करता है।

वक़्त गुज़रता गया तीन महीने लगभग बीत गए कइरा को मरे हुए ।

ऐसा लगता था उसके घर के सारे अफ़राद मर चुके जिंदा लाश थे सब के सब।
माँ रोती रहती लीहमा उदास रहती लेकिन लकीश के अन्दर वो शक्की जानवर अभी भी जिंदा था।

कइरा की तिमाही के दिन कुछ मेहमान आए हुए थे गिरनस बहुत दुखी थी मेहमानों के आने से उसका ज़ख्म और गहरा हो गया।
सब बैठे बात कर रहे थे अचानक उसके सीने में बहुत तेज़ दर्द होने लगा सब ने कहा तबीब के पास ले चलो लेकिन लकीश के कान पर जूं तक ना रेंगी।

गिरनस तड़प रही थी लीहमा और लैनकस हाथ पैर दबा रहे थे- लैनकस बाहर भागा और जल्दी से पड़ोस से बैलगाड़ी ले आया लेकिन लकीश अभी भी उसको जाने नहीं देना चाहता था क्यूँकी उसके दिमाग में कुछ अलग ही था जो उसने बोल ही दिया-" मैं इसे तबीब के पास नही जाने दूँगा क्यूंकि तबीब एक जवान लड़का है "।

और बोला -" लैनकस तू जा और दवा ले आ, ।

लकीश के अल्फाज़ सुनकर लैनकस ने अपने बाप की तरफ इस गुस्से से देखा मानो उस पर हाथ उठा देगा लेकिन अदब का आता था उसे।

लकीश ने बहुत देर तक उसको जाने ही ना दिया ।
तड़पती माँ को देख लैनकस से ना रहा गया उसने जबर्दस्ती मां को उठाया बैलगाड़ी में डाला और तबीब के पास ले गया लीहमा माँ के साथ जाना चाहती थी लेकिन लकीश ने ना जाने दिया पता है क्यूँ ? क्यूंकि वो लड़की थी जिसकी उम्र अभी सिर्फ़ बारह साल होगी उसकी सोच थी कि अगर यह बाहर निकली तो किसी से ताल्लुकात क़ायम कर लेगी।

सोचिए इस क़दर दुख में और इतनी सी देर में क्या ऐसा क़दम उठाना मुमकिन है?

मगर लकीश ने ना जाने दिया उधर लैनकस गिरनस को लेकर तबीब के यहाँ पहुँचा तबीब ने उसको देखते ही कह दिया तुमने लाने में देर कर दी अगर थोड़ी देर पहले ले आते तो शायद कुछ किया जा सकता था।

लैनकस उसके आगे हाथ जोड़ कर घुटनों के बल बैठ गया और बोला- " साहब मेरी माँ को बचा लो " लेकिन उसका कुछ भी करना अब काम ना आने वाला था।

उसने आँसू भरी आँखो से माँ का चेहरा देखा तो खुद को सम्भालने की कोशिश की और बैलगाड़ी को वापस घर की तरफ मोड़ लिया तमाम राह में उसकी नज़र अपनी माँ पर थी जिसने उनकी खातिर खुद को फना कर दिया था , लैनकस के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था।

उधर लीहमा को माँ से सबसे ज़्यादा लगाव था माँ की तबियत खराब होने से उसको इतना गहरा सदमा हुआ कि बेहोश हो कर गिर पड़ी थी मेहमानों ने उसको उठाकर चारपाई पर लिटा दिया था।

लैनकस भी अपनी माँ की लाश लेकर आ गया माँ की लाश देखते ही वास्हाले और दिकार चीखने लगे माँ माँ माँ पुकारने लगे,
लैनकस को रिशतेदारों ने सम्भाला उसके मामा ने भी जिन्होनें लकीश की बातों में आकर अपनी ही बहन गिरनस को बोला था कि डूब कर मर जा कहीं " सगे भाई की इस बात ने भी उसे बहुत दुख दिया था।

उधर औरतों ने लीहमा को होश में लाने के लिए सारे जतन कर लिए लेकिन वो होश में ना आई।

तबीब को बुलाया गया तो पता चला कि लीहमा ने भी अपनी माँ के सदमे में इस दुनिया ए फ़ानी को छोड़ दिया।

यह बात जब सबको पता चली तो कोहराम मच गया हर छोटे- बड़े इन्सान की आँख नम थी।

उधर इस सब का गुनाहगार लकीश झोंपड़ी से लग कर खड़ा हुआ उदासी का ढोंग रच रहा था।

गम में डूबे लैनकस ने सबकी मदद से बहन और माँ की तदफीन की, और अगले दिन ही गुस्से और दुख में वो घर छोडकर चला गया।
अब खानदान में लकीश , वास्हाले और दिकार बाक़ी थे।

लकीश अब रोज़ दिहाडी के लिए जाता दिकार और वासहाले झोपड़ी में खेलते रहते शाम को बाज़ार से खाने के लिए कुछ ले आता बच्चे उसको खाकर सो जाते।

फिर लकीश ने दूसरा ब्याह कर लिया था और दूसरी वीवी भी उसके शक करने की बिना पर छोड़ कर चली गई।

दिकार बाहर जाने लगा था उसकी पहचान एक नशा करने वाले शराबी शख्स से हो गई थी शराबी ने उसे नशे की लत लगा दी थी सारा दिन उसी के साथ रहता , और उसने अब रात को भी आना बन्द कर दिया था।

कभी कभी अगर लकीश उसको डांटता तो उल्टा उसी के ऊपर चढ़ जाता और बाप के ऊपर हाथ उठा देता, इसी डर से लकीश अब उससे कुछ ना कहता क्यूंकि लकीश अब बूढ़ा और कमज़ोर हो गया था, लाठी के सहारे चलने लगा था।

एक दिन लकीश झोपड़ी के बाहर बैठा था, दो लोग लकीश के पास आए उनके पास एक थैला था उन्होने लकीश के हाथ में वो थैला थमाते हुए कहा -" यह सामान लैनकस का है "।

लैनकस का नाम सुनते ही उसका चेहरा चमक उठा, एक दम खड़ा हो गया और पूछा-
" कहाँ है लैनकस? "

उन्होने बताया वो एक कारखाने में हमारे साथ काम करता था, कारखाने के हादसे में उसकी मौत हो गई थी।
उसने हमें अपने गाँव के बारे में कई बार बताया हुआ था इसलिए हम उसका सामान पहुंचाने आ गए ।
लकीश बेजान सा चारपाई पर बैठ गया उन दोनों लकीश को तसल्ली दी और चले गए ।

अभी वो दोनों लकीश के पास से गए ही होंगे इतने में ही झोंपड़ी के सामने एक जीप आकर रुकी और उसमें से दो हवलदार निकल कर उसके पास आए और पूछा- "लकीश कौन है ?"
उसने डरते हुए कहा जी जनाब मैं हूँ।

हवलदार बोला -" दिकार कौन है तुम्हारा "?
लकीश ने जवाब दिया मेरा बेटा है ।

हवलदार ने कहा-"उसकी की लाश रेलवे ट्रैक पर पड़ी हुई मिली है मुर्दाघर चलना पड़ेगा तम्हें।"

लकीश आज तक कभी इतना दुखी ना हुआ था लेकिन आज उसे अहसास हुआ कि औलाद का गम क्या होता है ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि सिर्फ़ दिकार ही था जो उसका लड्ला था और आज वो भी चला गया।


बूढ़ा लकीश हवलदार के पीछे कमर झुकाए हुए पीछे पीछे चलता गया और जीप में सवार होकर मुर्दाघर चला गया ।

कुछ घण्टो बाद ही बूढ़ा लकीश गाँव के बाहर धीरे-धीरे बैल गाड़ी पर सवार दिकार की लाश लिए वापस आ रहा था ।

जैसे जैसे बैलगाड़ी झोपड़ी के क़रीब आ रहा थी उसने देखा कि उसकी झोंपड़ी पर भीड़ सी नज़र आ रही थी उसके दिमाग में अगले ही पल यह समझ लिया कि वास्हाले के पास ज़रुर कोई लड़का आया होगा उससे मिलने । मोहल्ले वालों ने पकड़ लिया होगा।

सब बर्बाद होने के बाद भी उसका शक्की इन्सान जिंदा था । पास आया उतरकर दिकार की लाश को उतरवा कर चारपाई पर रखा और गुस्से में वास्हाले को पीटने के लिए झोपड़ी में आया तो देखा वास्हाले नीचे पड़ी थी उसकी नाक और कान से खून बह रहा था।

लोगो ने बताया इसको साँप ने काट लिया और बेचारी मर गई।

बाहर दिकार पड़ा था और अन्दर वास्हाले ।

दिकार और वास्हाले को देखकर बूढ़ा लकीश पागल हो गया, दिमागी तवाजुन खो बैठा कपड़े फाड़ता हुआ घर से भाग गया । लोगों ने रोकने की कोशिश की लेकिन ना रुका।

लोगों ने वास्हाले और दिकार को दफनाया और वापस कब्रिस्तान से मकान की तरफ आ ही रहे थे कि किसी ने आकर बताया कि गांव के बाहर सड़क के किनारे झाड़ी में एक लाश पड़ी है ।

लोग उधर दौड़े और जाकर देखा झाड़ियों में कोई उल्टा पड़ा है लोगों ने उसे सीधा किया तो देखा उसकी सांस बाकी थी किसी ने कान उसके मुहँ के पास लाकर सुना , इतने में ही वो मर गया ।

सुनने वाले ने बताया कि मरते मरते वो कह रहा था-:

शक -: अज़ाब , ज़ुल्म और क़ातिल ।

पता है वो कौन था?

वो था लकीश।


Date-24 / 02/2021
Wednesday
Time -: 8:50 completed time



             Writer

Kaleem Pasha Shadran 



         



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