सर जी, ओ सर जी , सर जी
सर जी , ओ सर जी , सर जी
( अफसाना )
लेखक
( कलीम पाशा शादरान )
मैं हमेशा अकेला रहने का आदी हूं , लेकिन कुछ दिन पहले मैंने सोचा , आज उन लोगों के पास थोड़ा वक़्त बिताया जाए जिन्हें फ़ालतू लोगों में गिना जाता हैं क्योंकि वो लोग हमेशा चौराहे पर बैठे रहते हैं और वहाँ से गुज़रने वालों पर तनक़ीद करते रहते हैं।
मैंने सोचा आज उन्हीं के पास बैठा जाए और कुछ नया तजुर्बा हासिल किया जाए । इसी इरादे से मैं अपने दोस्त के साथ उनकी टोली में जाकर शामिल हो गया ।
मेरा दोस्त हैरान था मेरे इस इरादे से , और हैरान वो लोग भी थे , क्योंकि मैं कभी इस तरह किसी भी चौराहे पर नहीं बैठता था।
मैंने उनके चेहरों से जान लिया था कि वो अजीब महसूस कर रहे हैं मुझे वहाँ देखकर,इसलिए हम ने उन्हें ऐसा ज़ाहिर किया जैसे हमें भी ऐसी जगह बैठने का शौक है और उनका दिमाग बदलने में हम कामयाब भी रहे अब हम दोनों उनकी टोली का हिस्सा मालूम हो रहे थे।
लोग अपने अपने कामों से उधर से गुजरते जा रहे थे और यह लोग (जिनमें कुछ लोग बूढ़े भी थे और कुछ अधेड़ उम्र वाले )जो भी उधर से गुजरता उनकी खामियां कमियां निकालते और आपस में उसका मजाक उड़ा कर तफरीह लेने रहे थे।
जबकि जो खामियां वो उन गुजरने वालों में तलाश कर रहे थे वही सारी कमियां खामियां उन्हीं के घरों में वह आसानी पाई जा सकती हैं।
हमें उनके पास बैठे लगभग दोपहर ढल चुके थे । हम दोनों वहां बैठे तो थे लेकिन वहां पर एक एक लम्हा हमारे लिए दम घुटने जैसा था ।
उनकी इस हालत को देख हम दोनों एक दूसरे के चेहरे को देख ही रहे थे कि अचानक हमारी टोली में से किसी ने हंसते हुए ज़ोर से आवाज लगाई और बोला-"सर जी , ओ सर जी, ओ सर जी , ओ सर " ।
और सभी ठहाका मारकर हंसने लगे ।
मुझे लगा कोई शख्स ऐसा है जिसको यह इज्जत देते हैं लेकिन अगले ही पल दूसरे ने जोर की आवाज लगाई ," सर जी ओ सर "।
अब हम समझ चुके थे कि यह किसी का मजाक उड़ा रहे हैं
वह इसी तरह एक के बाद एक आवाज लगाते गए और सर जी सर जी बोलकर जोर जोर से हंसते रहे। हमने देखा सामने सड़क पर देखा एक अधेड़ आदमी जिसकी उम्र लगभग 45 साल होगी उधर से मुंह लटकाए जा रहा था।
और लोग उसको आवाज लगाते और हंसते मगर वह सिर ऊपर तक ना उठा पा रहा था।
तभी मैंने उनमें से एक उम्र दराज़ शख़्स से पूछा - "अब्बा क्या यह इस आदमी की चिढ़ है , आप सभी से ऐसा क्यों बोल रहे हैं ?
तब उसने बताया कि यह एक मास्टर है जो पास के गांव में रहता है इसको आसपास के सभी गांवो के लोग जानते हैं।
उसकी वजह यह है कि यह एक बेकार शख्स है इसने पढ़ने लिखने बाद भी कुछ नही किया, बस बच्चों को पढ़ाता है, ना खाने को इसके पास कुछ है , ना पहनने को इसके पास कुछ है , ना यह शादी कर पाया , ना ही यह कुछ कमा पाया बस बच्चों को पढ़ाता है और इसी तरह इसने जिंदगी गुज़ार दी।
इसकी फिकर में इसकी अम्मा भी मर गई , घर भी इससे बन ना पाया , बेकार आदमी यह सारी बातें वो अब्बा बड़े ही बुग्ज़ वाले अन्दाज़ में बता रहे थे।
और फ़िर एक दम से तकव्वुर से चौड़े होकर बोले -" हमने ना पढ़ाया अपने बालकों कू , छोटे सारे से ही तीनों लोंडो कु काम पे डाल दिया थोड़े दिनो में ही पैसे लान लगे, आज लोंडो ने पक्का घर भी बना लिया दो लोंडो ब्याह भी कर दिया अब छोटे वाले लल्ला का भी कर दूँआँ ।
और कल ही उनका लड़का मुझसे बोल रहा था यार लोंन्डे को किससे पढ़वाऊँ, हमारे बाप ने तो हमें पढ़ाया नहीं सोच रहा हूँ यह तो हमारी तरह अँगूठा छाप ना रहे ।
मगर हमारा दिमाग सिर्फ़ उस इंसान की तरफ था जिसके अच्छे काम को भी लोग उसकी मजाक का जरिया बनाए हुए थे सिर्फ इसलिए क्योंकि वो पैसा ना कमा पाया वो घर को पक्का ना करा पाया ।
और वो लोग जो धर्म और दिन से कोसों दूर हैं जिनको अच्छे बुरे रिश्ते नातों की अक़्ल भी नहीं जो बीबी को पैर की जूती समझते हैं और ससुराल अपने बाप की जागीर और वहाँ रहने वाले ससुर, सास , सालों को अपना गुलाम समझते हैं वो जाहिल उस इल्म वाले को हक़ीर समझते थे।
हराम माल कमाकर चोरियां करके जिन्होंने अपने घर मजबूत और कई मंजिला बना लिए थे, जिनको पता भी नहीं कि आने वाले दौर में उनकी जहालत से उनकी औलाद उनका क्या करेगी , वो सारे के सारे उसके इल्म का मजाक उड़ाते थे।
उसके रिश्तेदार उसके पास आकर अपनी जाहिल औलाद उसे उसका मावज़ना करते थे।
वो कैसे उन सब को समझाने की कोशिश करता होगा, कितना ज़लील होता होगा जब उसके अपने रिशतेदार ही उसे रुस्वा करते होंगे।
वो सब के सब यह भूल गए थे कि करोड़ जाहिलों से बेहतर एक पढ़ा लिखा इंसान होता है वो यह भूल गए कि दौलत इकट्ठा करने से इंसान आलिम नहीं कहलाता, वो यह भूल गए कि जाहिल इंसान जानवर की तरह ही होता है जिसको जितना बताया जाता है,जितना कहा जाता है,जितना वो देखता है बस वही बोलता और करता है ।
जिनकी औलादें उनके सामने हंसी मजाक करती हैं जिन की औलादें उनके सामने बीड़ी सिगरेट पीकर धुआं उड़ाती हैं जिनकी औलादें उनको गालियां देती है।
वो लोग सिर्फ दौलत ही को सब कुछ समझ कर उस जिंदगी को अच्छी जिंदगी मान बैठे थे। और मज़ाल क्या है जो वो औलाद से कुछ बोल सकें क्योंकि उन्हें दौलत चाहिए और जो जाहिल औलाद पैसा देती है उसको लगता है वो पाल रहा है अपने माँ बाप को।
जो उसका मज़ाक उड़ा रहे थे उन्हें फुर्सत ही नहीं थी पैसा कमाने से ।
एक बैल की तरह सारी जिंदगी माल इकट्ठा किया और जिनके लिए किया उसको यह तक बता पाया कि हम क्या है ? अदब क्या है ? माँ बाप क्या हैं? बस दौलत कमाई यही सारी उम्र और मर गया तो औलाद ने एक बार भी कबर पर जाकर देखा तक ना देखा और ना ही उसके नाम का कोई पूजा पाठ किया।
लेकिन क्योंकि वह बेचारा अकेला था हर तरफ जाहिल ही जाहिल थे जिनकी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद था ,और वो था- " पैसा कमाओ , शादी करो , बच्चे पैदा करो , पैसा कमओ, शादी करो,बच्चे पैदा करो "।
बस उससे आगे वह सोच ही नहीं पाते थे औलाद का क्या होगा बड़े होकर उससे उनका कोई मतलब नहीं था वही औलाद फ़िर बड़े होकर उन को बाहर का रास्ता दिखाती है तब उनको समझ नहीं आती कि यह सब उन्हीं ने तो सिखाया था।
खाना ढूंढना पेट भरना और बच्चे पैदा करना यह तो एक कुत्ता भी करता है वो यह सब भूल गए और यही लोग होते हैं जो पानी की बर्बादी करते हुए कहते हैं पानी खत्म नहीं होगा और इसीलिए आवाज़े लगातार आती गईं लगातार उसको चिढ़ाया जाता रहा और बोला जाता रहा- "सर जी ओ सर जी ।"
अकरम और मेरे दोनों के दिमाग में उसके बारे में जानने के लिए चाहते जागी और हम दोनों उस आदमी के पीछे चल पड़े। जिसको राह के ज्यादातर लोग चिढ़ाकर मजा ले रहे थे ।
हमारे कस्बे से निकलकर एक गांव था उसी गांव में रहता था वो , हम उसके पीछे पीछे चलते रहे ।
रास्ते में जो बच्चे मिलते जा रहे थे उसको को सलाम या प्रणाम करते और वो खुश होता जा रहा था ।
लेकिन उसके अपने गांव में भी हमने उसी अंदाज में वही आवाज़े सुनी " सर जी, ओ सर जी ,सर जी । हमें बहुत अफसोस हुआ और हम उसी तरह अनजान बनकर उसके पीछे चलते रहे।
उस गांव की जिस गली से हम निकलते उस गली में कोई ना कोई उसको इसी तरह छेड़ता और हंसता लेकिन मेरी और अकरम भाई की नजर में वो सब उन फालतू लोगों से अच्छा था।
क्योंकि जब वो हराम माल कमाने में लगे हुए थे तब वो ही उनके बच्चों को हराम हलाल का फर्क बता रहा था, जब वो किसी का माल चुराते रहे थे तो वही उनकी आने वाली नस्लों को चोरी से बचने की नसीहत दे रहा था।
जब वो गालियां दे रहे थे तो दूसरी तरफ वही उनको गालियों से बचाने की कोशिश कर रहा था और बोलने के आदाब सिखा रहा था ।
और इन सब में वो भूख प्यास सब भूल गया , भूल गया अपने ख्वाबों को उसने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया सिर्फ इसलिए ताकि माहौल में थोड़ा बदलाव ले आए ।
और देने वाले ने जो उसे जो इल्म दिया था वो उसका पूरा इस्तेमाल कर रहा था, जैसा हक़ीक़त में करना चाहिए ,और उसने यह सब बिना किसी ज़ाती लालच के ।
और इन सब का सिला उसे मिले चंद अल्फाज़-" सर जी ओ सर जी सर जी "।
और वो हमारी नजर में सबसे बेहतर था ।
आखिर वो एक गली जोकि पतली सी थी में घुसा ।
हम उससे कुछ दूरी पर थे वो एक मकान पर रुका जो बिल्कुल कच्चा था मिट्टी की दीवारें, टूटा हुआ दरवाजा , कच्ची छत , और कुछ बच्चों के हंसने की आवाज भी आ रही थी, यही उसका मकान था ।
उसने टूटे हुए किबाड़ की कुंडी को बजाया दरवाजा शायद अंदर से बंद था ,अगले ही पल दरवाजा खुला और एक निहायत खूबसूरत से बच्चे का मुस्कुराता हुआ चेहरा नजर आया, वो उस बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए अंदर दाखिल हो गया।
हम यह सब हम दूर खड़े देख रहे थे, तभी सारे बच्चे जिनकी हंसने की आवाज़े आ रही थीं, निहायत ही अदब के साथ अपने बस्ते लिए बाहर आने लगे और उनके जाते ही उसके घर में सन्नाटा छा गया।
शायद थक गया होगा इसलिए आराम करने की वजह से उसने उन बच्चों की छुट्टी कर दी और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था।
मैंने अकरम से पूछा- " क्या ऐसे में इनसे जाकर मिलना अच्छा होगा "?
उसने कहा- " यार थोड़ा रुक कर चलते हैं "
हम इंतजार कर रहे थे तभी उसके घर से बहुत जोर से रोने की आवाज आई जो कि एक बहुत छोटे बच्चे की थी बच्चा जोर-जोर से सीख रहा था और वही अल्फाज दोहरा रहा था, "सर जी , ओ सर जी, सर जी, सर जी ।
बहुत देर तक हम समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है ? हमने सोचा देखते हैं कभी इस बच्चे को शायद पीट रहा हो।
हमने दरवाजे की कुंडी को खटखटाया मगर कोई भी दरवाजा खोलने के लिए नहीं आया उस बच्चे की रोने की आवाज लगातार बढ़ती जा रही थी ।
अकरम भाई ने दरवाजे के सुराख में एक लड़की डालकर दरवाजे खोल लिया और जैसे ही हम उस कच्चे मकान में दाखिल हुए हमारे होश उड़ गए।
वो इंसान छत में बंधी रस्सी के फंदे से लटका पड़ा था , और एक बच्चा उसके झूलते पैरों को लिपटा हुआ रो रहा था और कह रहा था -"सर जी ,ओ सर जी, सर जी ।
हम समझ ही नहीं पाए कि यह क्या हुआ ।
आनन-फानन में हमने उसे फंदे से उतारा और देखा वो इस दुनिया से जा चुका था यानि मर चुका था।
हम वहीं बैठ गए धीरे-धीरे लोग जमा हो गए देखते ही देखते मजमा लग गया , और लोग अपनी अपनी अकल के मुताबिक खयालात रखने लगे ।
पीछे से आगे बढ़ते हुए एक बूढ़े आदमी ने कहा-" कर्जा होगा किसी का चुका नहीं पाया तो फांसी लगा ली होगी। "
फिर एक नौजवान लड़का बोला- " किसी लड़की का कोई मामला था , बात खुल गई होगी , बचने के लिए फांसी लगा ली । और इसी तरह की नई-नई बातें वो लोग बनाते रहे ।
सब अपने आप में अक़्ल्मंद थे , जिनको अपनी हर बात सच नजर आ रही थी लेकिन असल में हमारी नजर में वही सब लोग कातिल थे।
आखिरकार हम ने कुछ और लोगों को साथ लेकर उसको दफनाया ।
शाम हो गई थी अकरम भी घर जा चुका था।
अब मुझे अहसास हो चुका था कि मेरा अकेला ही रहना ठीक है ।
मैं अपने उसी कमरे में जा बैठा जहां में हमेशा बैठा करता था जहाँ मुझे सुकून मिलता था।
मगर मेरे जेहन में अभी भी कुुछ ताज था और जो जिंदगी भर मैं ना भूल सकता था और वो थे वही अलफाज -"सर जी , ओ सर जी, सर जी , सर जी ।
कलीम पाशा शादरान ✍
Date- 17 th june 2021
Thursday
11:11 am
Wah mere pyare bhai jaan allah apko or ziyada kamyabi ata farmaye or apke waliden ka saya apke sar hamesha kayam rkhe ��
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