क़ातिल कौन? लाला ? बच्चे ? भूख ?

 

                  क़ातिल कौन ?  लाला ?  बच्चे ?  भूख ?





हमारे यहां एक लाला है ।


नाम है स्लीतम दुबे ।

दुबे जी हमारे कस्बे के एक बहुत ही रईस , जमींदार और कारोबारी आदमी माने जाते हैं , दिखने में तंदुरुस्त है और हट्टे कट्टे भी ।
इन सब के बीच उनके अंदर एक और भी खास आदत है और वो है उनकी कंजूसी।

मगर यह कंजूसपन आमतौर पर होने वाले कंजूसी से बिल्कुल परे था मतलब इसमें एक खासियत थी। खासियत यह थी कि यह सिर्फ उनके यहां काम करने वाले मज़दूरों पर लागू होता था ।
खुद तो मोटर गाड़ियों में घूमते , अपने खानदान का ख्याल भी बाकायदा एक जिम्मेदार मुखिया के तौर पर करते और उन्हें किसी भी चीज की तंगी ना होने देते यहाँ तक कि उनके ऐश के लिए कुछ भी कर सकते थे,मगर जैसे ही उनके कारखाने में काम करने वाले किसी मजदूर को उसकी तनख्वाह देने का वक़्त आता तब उनका वह कंजूस इंसान जागता और फ़िर ऐसी गजब की अदाकारी का मुज़ाहिरा करते कि सामने वाला कुछ बोल ही नहीं पाता।

उनके कई सारे कारोबार हैं जिनमें उनका कारखाना भी है जिसमें लगभग 25 लोग अच्छे ओहदे पर हैं और बाकी नीचे पोस्ट वाले हैं यानी मामूली तनख्वाह वाले,
लेकिन दुबे जी को कम या ज्यादा तनख्वाह से कोई फर्क नहीं था उनके लिए तो एक आना भी किसी को देना उनकी जान निकालने जाने जैसा था।
वो हमेशा काम तो बराबर लेते अच्छे काम की उम्मीद भी रखते मगर तनख्वाह देने के वक्त बेचारे बीमार से पड़ जाते मानो उनसे रुपए नहीं उनकी सांसे मांगी जा रही हों ।
यह तो थे लाला स्लीतम दुबे और उनके गुण ।

लाला जी के जैसा ही उनका एक सेवक भी था जिसको कलोआ मुनीम कहते थे ।
कलोआ था बड़ा चालाक । 
लाला जी के कान में ऊंची, नीची , झूठी , बुराई करता और उनका भरोसा अपने ऊपर कायम रखता और इस बात का भरपूर फायदा भी उठाता।
उस जैसे कुछ और भी थे जो एक दूसरे की चुगली किए बिना नहीं रह पाते थे ।
मानने को तो उसमें 25 मजदूर थे जो एक साथ काम करते मगर कोई किसी का ना था।
और इसी चीज का लाला जी और उनका मुनीम फायदा भी उठाते वो किसी एक को बुलाते उसके सामने किसी दूसरे से बुराई करते और चेहरे पर उसकी तारीफ़ करते और वह खुश हो जाता उसको लगता कि दुबे जी तो मुझे अच्छा समझते हैं और वह दुबे जी की तारीफ करता हुआ बाहर निकल आता ।
यहाँ तक कि तनख्वाह वगेरह सब भूल जाता।
यहीं मामला सभी के साथ दोहराया जाता रहता ।

उन्हीं में एक मजदूर मलुआ था ।
बड़ा उदास सा रहता था कम बोलता और अपना काम जिम्मेदारी से निभाता था।
मुझे वो पसंद था लेकिन वो बाक़ी लोगों को पसंद नहीं था क्युंकि उसे किसी में खामियां निकालना कानाफूसी करना बिल्कुल पसंद नहीं था और इसीलिए वह हमसे हमेशा थोड़ा अलग अलग से रहता था।

स्लीतम लाला मोटर में आते दरबान जो कि औरत थी उनका बैग लाती और लाला आकर अपने शांत कमरे में बैठ जाते हैं मुनीम कलोआ फौरन हाजिरी देने वहां जा बैठता और सारी कहानी जो गुजरी उसको मसाला लगाकर पेश कर देता।
इसी तरह रोज दिन गुजरता और सब काम करते और घर चले जाते।

उसी दौरान पूरे शहर में बाढ़ आ गई बाढ़ इतनी तबाही मचाने वाली थी कि हर तरफ पानी ही पानी था, कच्चे मकान गिरने लगे, फ़सलें , करोबार सब बर्बाद हो गया ।लोग अपने घरों से निकल भी नहीं पा रहे थे ।
लगने लगा कि पानी का कहर आने वाले कई महीनों तक नहीं कम नहीं होगा ।

लोगों के कारोबार खराब हो गए जो खाने को था सब खत्म हो गया।
यहां तक की फाकों तक नौबत आने लगी थी लोग अपने खानदान को भूखा प्यासा नहीं देख सकते थे।

ऐसे हालात देखकर कुछ खुद्दार लोगों ने ज़रूरतमन्द लोगो की मदद करनी शुरू की । कुछ अमीर लोग भी मदद को आगे आए चाहें अपनी शौहरत के लिये ही सही मगर उन्होँने मदद पहुचाईं ।
हर एक अपनी-अपनी तरह से मदद पहुंचाता रहा ।
मगर लाला स्लीतम पर इसका कोई असर नही हुआ बल्कि उन्हें तो करोबार रुक जाने ही सदमा खाए जा रहा था ।
इस बाढ़ ने उन मज़दूरों की भी कमर तोड़ दी थी जो लाला स्लीतम के यहाँ काम करते थे ।

उनके घरों में भी दिक्कतें बढ़ने लगी किसी के घर दवा के लिए पैसे नहीं थे किसी के पास खाने के ।
जमा पूँजी वो खर्च कर चुके थे अब वो पूरी तरह से खाली हो चुके थे ।

अब उनके लिए अगर कोई रास्ता था तो वो थे लाला स्लीतम दुबे क्युंकि उनकी तन्ख्वाह लाला ही के पास रखी थी पिछ्ले कई सालों की ।

उनके लिए यह वक़्त ज़्यादा मुश्किल इसलिए भी था क्यूंकि लाला ने उन्हें बहुत माह की तन्ख्वाह दी ही नहीं थी ।

उन्होंने सोचा कि लाला से पुराना हिसाब और अब तक का सारा हिसाब कर लिया जाए तो कुछ घर के लिए अनाज ले लूं इसी आस में सारे मजदूर एक एक करके लाला स्लीतम दुबे के पास जाना शुरू हुए । लाला ने अपने अंदाज के मुताबिक उनको तरह तरह के बहानो से टरखा दिया ।
आजकल आजकल में महीनों लाला ने गुजार दिए और लगभग 3 महीने गुजर चुके लेकिन लाला ने किसी भी एक मजदूर को कोई रुपया नहीं दिया।

उन सभी मजदूरों की हालत एक जैसी थी लेकिन उनमें सबसे ज्यादा जो मुश्किल दौर का सामना कर रहा था ।
वह था मलुआ । इसीलिए उसने फिर से स्लीतम दुबे के पास एक आखिरी बार जाने का इरादा किया और लाला के मकान पर पहुंच गया।
मलुआ लाला के यहां पहुंचा तो उसका मुलाजिम अंदर गया और खबर पहुंचाई ।

मुलाजिम तो जानते ही हैं आप। । कलोआ मुनीम ।

अन्दर लाला तरह तरह के मेवों का मज़ा ले रहे थे जैसे ही मलुआ के आने की खबर लाला को हुई लाला ने सामने मेज़ पर रखे मेवों और पकवानो को सामने से हटाकर छिपा दिया और अदाकारी के लिए तैयार हो गए और बहुत उदास सा मुहँ बना कर बैठ गए ।

मलुआ उनके कमरे के दरवाजे पर आया और बोला- मालिक क्या मैं अंदर आ जाऊं ।

लाला अपने किरदार में बोले - हां हां आइए बैठिए, मलुआ सामने पड़े स्टूल पर बैठ गया।

इससे पहले कि मलुआ कुछ कहता लाला ने पहला वार किया और कहा- "और सब खैरियत है सब कैसे हैं घर सब ठीक चल रहा है "

मलुआ चुप था वह हर बात पर सिर हिलाता रहा ।

फिर बहुत देर चुप रहने के बाद बोला - लालाजी मुझे पैसों की सख्त जरूरत है आप मेरा सारा हिसाब कर दें ।

इतना कहना था लाला अपने किरदार की आखिरी पहरी पर पहुंचे बड़े उदास होकर बोले -" मलुआ तुम तो जानते हो जब से बाढ़ आई है तब से सारा कारोबार ठप हो चुका है इस आफत ने सब के ऊपर ही असर किया है और हमारे पास भी कोई आमदनी नहीं हो रही तो इस वक्त मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता एक-दो दिन में इंतजाम करके मैं तुम्हारे पास खबर भिजवा दूंगा।

मलुआ की आंखों से आंसू गिरने लगे क्यूंकि यही बातें वो पिछ्ले तीन महीनों से सुन सुन कर गुजारा कर रहा था ।
यही दिलासा देकर तो वो अपने बच्चो को हिम्मत दे रहा था कि कल को हम भरपेट खाना खाएंगे जब लाला तन्ख्वाह देंगे ।

उसने कहा - मालिक हालात बहुत नाजुक है मेहरबानी करके मुझे मेरी तन्ख्वाह दे दें । बच्चे दो दिन से भूखे हैं बेटी बीमार है घर में खाने को कुछ भी नही हैं ।

मगर लाला के ऊपर इन बातों का कोई असर नहीं था ना उसके आंसुओं का ना उसकी मजबूरी का ना उसके रोने का ।
 लाला फिर वही दोहराने लगे कि  "मलुआ देखो इस वक्त तो सभी मुश्किल में है सबके ऊपर वक्त बुरा है मैं कोशिश करके खबर पहुंचा दूंगा । "

मलुआ उन्हें काफी वक्त से जानता था इसलिए वह समझ चुका था कि लाला पैसे नहीं देंगे इसलिये वहां से चुपचाप उठा और सारा दिन इधर उधर घूमा, शाम हुई तो घर चला गया ।


अगले दिन मैं सुबह उठा और अपनी छत पर पहुंचा थोड़ी वर्जिस की और टहलने लगा तभी नीचे सड़क पर से आवाज़े आनी शुरु हुई छज्जे की तरफ आया तो मैनें देखा वे  सारे मजदूर इकट्ठा हो रहे थे जो लाला स्लीतम दुबे के यहाँ काम करते थे ।

मैंने सोचा आज ये शायद लाला स्लीतम दुबे के पास एक साथ जाएंगे और उससे अपनी तनख्वाह लेंगे।

मैं नीचे उतरा और क्या माजरा है जानने के लिए मैंने एक से पूछा क्या बात है भाई ? सब लोग कहां जा रहे हो ? उसने जो बात कही उस को सुनकर मैं सन्न रह गया ।
उसने बताया कि- उनके साथी मलुआ की मौत हो गई है मैं भौचक्का रह गया ।
मैनें एक दम से पूछा - कैसे? उसने बताया- खुदकुशी कर ली उसने ।

मैं भी जल्दी से उन लोगों के साथ मलुआ के घर पहुंचा और सब उसके छोटे से घर में दाखिल हुए, जो कि सिर्फ एक कमरे का बना था। दाखिल होते ही हमने देखा कि एक फटी चादर बिछी है जिस पर मलुआ ऐसी नींद में सोया हुआ था जो कभी ना खुल सकती थी।
उसकी बीवी उसके पास ही बेहोश पड़ी थी उसका एक छोटा सा बच्चा था जो अपने बाप के चेहरे से खेल रहा था शायद वह मलुआ को उठाने की कोशिश कर रहा था, मगर उसे क्या पता था कि उसका बाप अब कभी नहीं उठेगा । कुछ पड़ोस की औरतें भी वही बैठी थी दो या तीन होंगी ।

कमरे के कोने में जमीन पर ही बीमार बेटी गश खाए हुए पड़ी थी।
तभी लाला स्लीतम भी अपने उस चापलूस मुलाजिम के साथ यानी कलोआ के साथ पहुंचे और उसको देखा । कुछ पल रुकने के बाद बाहर आ गए मैं भी उनके साथ बाहर गया । बाहर आकर वो बहुत गमगीन होने वाले अन्दाज़ में हम सबको समझाने लगे कि जो होता है सब उसकी मर्ज़ी से होता है । समझा ऐसे रहे थे जैसे खुद पहुंचे हुए बाबा हैं ।

ऐसे वक़्त में भी जबकि मलुआ मर चुका था उनका कंजूस और झूठा अदाकार जिंदा था लोगों से कह रहे थे कि कल ही तो मैंने इन्हें इनकी तनख्वाह दी थी शायद घर में ही कोई बात हो गई होगी,तरह-तरह की बातें बनाने लगे और सब को जाहिर करने कि कोशिश की कि वो भी बहुत दुखी और हमदर्दी में हैं और अपनी हमदर्दी को साथ लिए मोटर गाड़ी में सवार होकर वहाँ से चले गए ।

लाला स्लीतम मन ही मन खुश था क्योंकि उसे अब एक आदमी की तनख्वाह नहीं देनी होगी ।
हम सारे लोगों ने मलुआ के आखिरी फ़र्ज़ को अदा किया ।

थोड़ी ही देर बाद सब अपने अपने घर जा चुके थे, क्योंकि मेरा दिल ज़्यादा सदमे में था मैं फ़िर से मलुआ के मकान में गया और उसकी यादों को तलाशने लगा । कमरे में बिखरे हर सामान से उसकी बेबसी नज़र आती थी तभी मेरा ध्यान उस टूटे पलंग की तरफ गया जहां एक पुरानी कॉपी रखी हुई थी मैंने जाकर उसे देखा ।



पहले पन्ने पर धुंधले से अल्फ़ाज़ में लिखा था ।




क़ातिल कौन?





लाला ?






बच्चे?






भूख?







Writer- kaleem pasha shadran
Date - 04/12/2020
Friday
Time-4:54 pm







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