कसील
कसील
(अफ़साना )कलीम पाशा शादरान ✍
पहाडों के बीच गरीब लोंगो का एक क़बीला है नाम है अदलपुर।
उसी कबीले में कसील नाम की एक लड़की रहती थी।
कसील अपने कबीले की एक निहायत ही खूबसूरत हसीन जमील लड़की थी, जो भी उसको देखता उसकी तारीफ़ किए बगैर नहीं रह पाता था।
उसकी ख़ूबसूरती की वजह शायद एक चीज़ और थी और वो थी उसकी उम्र ,
क्यूंकि उसकी उम्र अभी सिर्फ़ बारह साल थी।
कसील के दो भाई और एक बहन थी । बहन का नाम वसील था, कसील उनमे सबसे बड़ी थी, वसील उससे छोटी और फ़िर दोनों भाई, जोकि अभी बहुत छोटे थे ।
तमाम अदलपुर को उस पर नाज था, खूबसूरत होने के साथ साथ वो ज़हीन भी बहुत थी, वो जिससे भी बात करती अदब और खुलूस के साथ करती ऐसा लगता था मानो ज़बान से मोतियों की बारिश हो रही हो, जो भी उसे देखता दंग रह जाता।
बाप को उस पर इतना फख्र था कि खानदान की सारी जिम्मेदारियां उसी पर डाल दीं थीं , तमाम आमद और खर्च उसी के ज़िम्मे था।
कसील उन सारी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम देती थी ।
कसील का बाप लाइस था जो निहायत ही शरीफ और नेक इंसान था। मेहनती होने के साथ साथ वो बहुत ही ईमानदार इंसान था, उसकी मेहनत और नेकदिली से कबीले का हर एक शख़्स बखूबी वाक़िफ़ था।
पेशे से वो एक लकड़हारा था । सुबह सवेरे उठना नमाज़ अदा करना और तड़के ही जंगल जाकर लकड़ियाँ काटना उसका रोजाना का मामूल था। इकठ्ठा की हुई लकड़ियों को बाजार में जाकर बेच आता , उन्हें बेचकर चन्द सिक्के मिलते, जिनको पाकर खुश होता और खुदा का शुक्र अदा करता हुआ क़बीले वापस हो जाता ।
मगर उसके चेहरे पर परेशानी की एक लकीर को साफ तौर पर देखा जा सकता था , उसकी वजह शायद उसका खानदान होगा , उसे अब अपने बच्चों की फ़िक्र होने लगी होगी या फ़िर कसील के ब्याह की फिक्र सताने लगी होगी या फ़िर सोचता होगा कि उसकी बेटियों की शादियों के बाद वो कैसे रहेगा ? जिनसे उसे हद से ज़्यादा मोहब्बत थी, या अगर उसे कुछ हो गया तो मेरी औलाद कैसे रहेगी ? उनकी देखभाल कौन करेगा ?
इसी सोच में वो कब अपनी झोंपड़ी तक पहुँच जाता पता ही ना चलता, कबीले पहुँच कर उन सिक्कों को कसील के हवाले कर देता, कसील जाकर उनको हिफाजत से रख देती।
लाइस झोंपड़ी के बाहर ही ज़मीन पर बैठ जाता, कसील उसे रोटी देती और एक रोटी खाकर बेचारा वहीं ज़मीन पर लेट जाता, नींद कब उसे अपने आगोश में ले लेती उसे पता तक न चलता ।
थक जाता होगा न बहुत।
बेचारा मेहनत करके अपने बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से करता था।
लोग जब उसकी तारीफ़ करते तो सबसे पहले अल्लाह का शुक्र अदा करता और जो कुछ उसके पास था उसको उसी की रहमत का सब करिश्मा मानता और यही उसकी पारसाई का जीता जागता सुबूत था।
इसके अलावा अपने हर काम के पीछे वो एक और हस्ती को बताता, और कहता कि यह सब उन्हीं के नज़रे करम से मिल रहा है । जो कि उसके मुर्शिद साहब थे, जिनका ताल्लुक एक रियासत से था। लाइस उन मुर्शिद साहब को अपने वालिदैन और खानदान से कहीं ज्यादा मानता, अपनी जान माल इज्जत ओ आबरू को भी उन पर कुर्बान कर देने से गुरेज नहीं करता।
मुर्शिद साहब भी उस पर उसी तरह नज़रे करम की इनायत रखते जिस तरह उनके क़रीब लाइस था ।
इस बात से सभी आसना थे कि लाइस ही मुर्शिद साहब को सबसे ज्यादा अज़ीज़ था, इसलिए वो अक्सर उसी की झोंपड़ी में आराम करते ।
मुर्शिद साहब लाइस की बेटी कसील से सबसे ज़्यादा मोहब्बत करते थे क्यूंकि जब भी वो झोंपड़ी में रात ठहरते तब वही थी जो उनके लिए झोंपड़ी को आरामगाह में बदल देती,और खुद उनकी तवाजे में हर पल तैयार रहती।
मुर्शिद साहब उसकी खिदमत भरे बर्ताव से ही उसे अपनी बेटियों से भी बढ़कर समझते थे।
मुर्शिद साहब के लिए क़बीले में मुकीम होने की जगह वही एक लाइस की झोंपड़ी थी, अगर क़बीले के किसी शख़्स को कोई मसला होता या कोई परेशानी आती तो उसको सुलझाने के लिए मुर्शिद साहब के पास जाते और गम और खुशी का इज़हार करते , अपने दर्द को उनके सामने ज़ाहिर करते और आखिर में सबकी मुश्किलें सुनकर मुर्शिद साहब रहनमाई करते ।
लोगों का मानना था वो एक वली हैं ।
यानि अल्लाह के दोस्त।
क़बीले के जितने भी साहिबे इरादा लोग उनके पास आते तब उन सब की तवाज़े का ख्याल कसील ही रखती थी, सब लोग उसकी जिमेदारियों की तारीफ करते , उधर मुर्शिद साहब को अपने चाहने वालों से बहुत लगाव था इसलिए हर दूसरे तीसरे रोज़ अपने सहिबे इरादा लोगों के हाल चाल जानने आते और उन पर नजर ए सानी किया करते । उनके खास अफ़राद उनके आने पर फ़ौरन हाज़िर हो जाते थे।
उसी दौरान मुर्शिद साहब के महल में कुछ काम में बढ़ोतरी होने की वजह से काम की दिक्कत हो गई और उन्होंने काम की खातिर कसील को अपने साथ ले जाने का इरादा किया और लाइस के लिए फरमान जारी किया कि कसील को कुछ दिन के लिए रियासत में अपने साथ लेकर जा रहा हूँ ,
मुर्शिद साहब लाइस के लिए एक फरिश्ते से कम नहीं थे , इसलिए उनकी किसी भी बात पर अमल ना करना लाइस के लिए मौत के मानिन्द था, यानि बात का इन्कार करना ना मुमकिन था ।
और इस तरह मुर्शिद साहब कसील को अपने साथ ले गए ।
उनका मकान , मकान कम महल ज्यादा नजर आता था । कसील उस जगह पर पहुँचकर बहुत खुश थी , चंद दिनों में ही उसको ऐसा लगने लगा जैसे वो यही पैदा हुई हो , उसे वहाँ पर रहना बहुत अच्छा लगा था , मुर्शिद साहब के खानदान के लोग भी उससे थोड़े दिनों में ही बहुत अच्छी तरह से घुल मिल गए थे ।
उसके वहाँ खुश रहने के पीछे दो अहम वजह थीं पहली यह कि उसने कभी अपनी झोंपड़ी और क़बीले से बाहर क़दम नहीं रखा था यानि उसे महल में रहना एक जन्नत के मानिंद लगा था।
और दूसरी वजह यह थी कि मुर्शिद साहब की खुद की बेटियों की उमर भी उसी की उम्र जितनी थी तो उसको सहेलियों का साथ भी मिल गया था।
मुर्शिद साहब का ख्याल उनकी सगी बेटियाँ बिल्कुल नहीं करती थी , बल्कि वो सारे काम जो उनकी बेटियों को करने चाहिए थे कसील किया करती थी। मुर्शिद साहब को अब एक और बेटी मिल चुकी थी जो उनका ख्याल पूरी ज़िम्मेदारी से रखती थी ।
उनकी जोज़ा साहिबा की भी मुर्शिद साहब से थोड़ी अनबन सी रहती थी , न जाने किसी बात पर ।
वहीं पर एक लड़का भी रहता था जो मुर्शिद साहब का ही रिश्तेदार था जो कसील को देखते ही उस का दीवाना हो गया था वो हर वक़्त उसको देखने और बात करने की फिराक़ में रहता मगर कसील उस पर ज़रा भी ध्यान ना देती।
कसील अब पूरी तरह वहीं की हो चुकी थी उनकी तरह पहनना उन्हीं की तरह चलना उन्हीं के जैसा बोलना ।
चूँकि वो उन्हीं में से एक बन चुकी थी इसीलिए वो अब सिर्फ़ कभी कभी कबीले आती थी ।
जब आती तो मुर्शिद साहब के साथ ही आती और थोड़े वक़्त ठहरती और उन्हीं के साथ वापस चली जाती ।
यह सब यूँही चलता रहा , वक़्त गुज़रता गया ।
इधर अब लाइस को कसील के ब्याह की फ़िक्र और भी ज़्यादा होने लगी, क्योंकि वो एक नेक और इज़्ज़तदार इंसान था, तो फ़िक्र होना उसके लिए वाजिब था।
उसी दौरान कसील की माँ की तबियत खराब हो गई , इसलिए कसील को कबीले आना पड़ा कुछ रोज़ के लिए ।
उन्हीं दिनो जब वो क़बीले में माँ का ख्याल रखने आई थी तभी एक दिन अचानक कसील की तबियत भी एक दम से बहुत बिगड़ गई , उसकी तबियत को सुनकर कबीले के लोगों में हडकंप मच गया ।
वसील उसकी छोटी बहन उसका सर दबाने लगी, और माँ पैर मसलने लगी ।
उसके बाप लाइस को जब यह खबर हुई तो मानो पागल सा हो गया, उसे समझ ही नहीं आया कि यह आखिर हो क्या गया है ?
आनन फानन में लाइस हकीम को बुलाने दौड़ पड़ा जो कि दूसरे क़बीले में था , बेचारा झोंपड़ी से निकला नंगे पाँव ही दौड़ना शुरू कर दिया ।
ठंड की काली रातों में खेत की मेंड पर भगते हुए उसका पैर बार बार फिसल जाता , फिसलकर गिर जाता, उठता और फिर गिर जाता ,
यह कमज़ोरी कोई महनत से होने वाली कमजोरी नहीं थी बल्कि कसील की तबियत बिगड़ने पैदा हुई कमज़ोरी थी, लेकिन न जाने कहां से उसके अंदर उठ खड़े होने की बार बार हिम्मत पैदा हो जाती थी।
शायद आज वो डर गया था।
डर गया था इस बात से कि जो उसका गुरुर था जिसे देखकर वो खुदा का शुक्र अदा करता था आज कहीं वो रहमत उससे छिन ना जाए यानि कसील को कहीं कुछ ना हो जाए ।
शायद यही ख्याल उसे दहशत दे रहे थे, और इसलिए गिरता गिराता आँसुओं को अस्तीन से पोंछता हुआ दौड़ा चला जाता था। सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि वो एक बाप था बल्कि इसलिए भी क्योंकि कसील उसकी सबसे बड़ी औलाद होने के साथ साथ उसकी सबसे ज़्यादा चहीती बेटी थी।
लाइस हकीम के दरवाजे पर पहुँचा ' अन्दर से किसी ने कुण्डी खोली और भीतर बुला लिया, लाइस जाकर सीधा हकीम के सामने हाथ जोड़कर गुजारिश करता हुआ बोला ...'' जनाब मैं मर रहा हूं मुझे बचाइए ।
हकीम ने जब लाइस की हालत देखी तो उसे पानी पिलाया और अहवाल पूछा उसने कसील की तबियत का हाल हकीम साहब को बताया।
हकीम फ़ौरन उसके साथ चल दिया, बेचारा लाइस छोटे बच्चों की तरह सिस्किया लेकर आँसू पोंछता और अपने मुर्शिद साहब का नाम पुकारता और मदद आक़ा मदद की गुहार सारे रास्ते लगाता जाता , क्यूंकि उन्हीं के हाथो के बोसे ले लेकर तो उसको आराम आता था। हकीम और लाइस दोनों क़बीले पहुँच चुके थे ।
लाइस बाहर ही रुक गया, हकीम जी ने कसील की तबियत को परखा, थोड़ी देर हालात का जायजा लेने के बाद वो झोंपड़ी से बाहर निकल आए और लाइस जो की दरख्त से टेक लगाकर बैठा रो रहा था के पास आए और उसके कांधे पर हाथ रखकर बहुत अफ़सोस के साथ बोले - " लाइस तुम्हें बहुत हिम्मत से काम लेना होगा संभालो खुद को...... .."' ।
लाइस ने पूछा - "ठीक तो है मेरी बच्ची "?
हक़ीम ने जवाब दिया कि बेटी ठीक है लेकिन ..........
लाइस ने घबराते हुए पूछा -" हकीम साहब जल्दी बताइए मेरी बेटी ठीक तो है ना?
हकीम ने कहा-" कसील के पेट मैं बच्चा है "।
लाइस चौक गया घबराकर बोला ... क्या ?
हकीम ने कहा वो माँ बनने वाली है ।
लाइस अभी तक यह समझ नाही पा रहा था की यह हकीम बोल क्या रहा है ?
उसने जज़वाती रवैये में हकीम से कहा... जनाब आपको पता भी है आप क्या कह रहे हैं, दिमाग तो ठीक है आपका ?
हकीम ने उसे समझाते हुए कहा कसील मेरा जो काम था मैं कर चुका हूं अब इजाज़त चाहूंगा , और यह कहते हुए हकीम अपने कबीले की ओर चला गया।
लाइस उसे बहुत दूर तक देखता रह गया ....और अभी भी उसे हकीम साहब की बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था।
बहुत देर तक वो उसी तरह बेसुध पड़ा रहा ।
लेकिन अब उसकी आंखों के आंसू सुख चुके थे,
७ उसने खुद को संभला और कसील के पास गया और सारे लोगो को झोंपड़ी से निकाल कर कसील के पैरों पर गिरकर बोला ......""बेटी ""
'कह दे कि यह सब झूठ बोला है उस हकीम ने'।
कसील ने जब उसके यह अल्फाज सुने और बाप को बेहाल देखा तो उसे समझने में देर नहीं लगी कि सब कुछ तबाह हो गया है और रोते हुए अपने बाप के कदमो से लिपट गई।
और माफ़ी की गुहार शूरू कर दी , लाइस समझ चुका था कि जो भी हकीम ने कहा वही हक़ीक़त थी।
बहुत देर तलक वो यूँ ही बेजान सा खड़ा रहा ।
लाइस ने खुद को संभला और यह जानने की कोशिश करनी चाही कि कौन है वो शख्स जिसने यह किया है, गुस्से में उसने कसील से जानना चाहा ।
लाइस समझता था कि उसकी बच्ची साफ़ थी, बेटी को किसी ने बहकाया होगा वरना वो बहुत नैक थी , लेकिन उसका गुस्सा उस वक़्त और भी भड़क गया जब उसने कसील के मुँह से सुना कि यह जो भी हुआ सब कसील की मर्ज़ी से हुआ था उसने बताया कि वो दोनों एक दूसरे से इश्क़ करते हैं एक दूसरे के बगैर एक पल भी नहीं रह सकते ।
कसील का बर्ताव आज निहायत ही फहिशाना था जिसको देखकर लाइस समझ चुका था कि उसने अपनी बेटी से हद से ज़्यादा उम्मीद लगा रखी थी जिसका खामियाज़ा आज उसके सामने था , उसने जब ऐसे अल्फाज़ सुने तो उसने कसील को इतनी जोर का तमाचा जड़ा के एक तमाचे में ही कसील बहोश हो गई , या फ़िर बेहोश होने का झूठा दिखावा करने लगी।
लाइस ने चाहा अभी कत्ल कर दूँ लेकिन इज्ज़त कि खातिर वो अगले मौके का इन्तेज़ार करने लगा।
अब उसने कसील को जान से मारने पक्का
इरादा भी कर लिया था लेकिन सही मौके का इंतजार को सोचकर उसी गुस्से में वो झोंपड़ी से निकला और जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपनी ज़िंदगी को कोसता रहा।
तभी उसको अपने मुर्शिद साहब का ख्याल आया , जोकि हर बार उसे हर मुश्किल से बाहर निकाल लेते थे आज वो उनको बहुत याद कर रहा था क्युंकि आज ही हक़ीकत में उसको किसी सहारे की बेहद ज़रूरत थी और इसी तरह वो अपने मुर्शिद से मदद मुर्शिद मदद पुकारता जाता और रोता जाता ।
उधर कबीले के ही किसी शख़्स ने कसील की तबियत खराब होने की खबर उन मुर्शिद साहब के पास पहले ही पहुँचा दी थी इसलिए वो भी अपनी खानकाह से उसी लम्हा निकल चुके थे । अपने घोड़े पर इतनी तेज़ रफ़्तार से किया गया यह उनका पहला सफ़र था उनकी 55 साला जिंदगी में।
यह तेज़ी शायद इसलिए थी क्यूंकि वो भी उसको अपनी बेटी से ज़्यादा प्यार करते थे और उसी तेज़ी से वो शाम होने से पहले ही कबीले पहुंच गए ।
जैसे ही लाइस की नज़र अपने मुर्शिद साहब पर पड़ी भागकर उनके पैरों में गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा, मुर्शिद साहब ने उसे उठाया और एक तरफ़ दरख्त के पास दोंनो बैठ गए।
लाइस ने उन्हें सारे हाल अहवाल से वाकिफ़ कराया।
मुर्शिद साहब ने लाइस को काफ़ी देर दिलासा दिलाया समझाया और कसील को देखने झोंपड़ी में चले गए, झोंपड़ी में दाखिल होते मुर्शिद साहब ने पाया कि कसील बेसुध ज़मीन पर पड़ी थी या बेहोशी का दिखावा किए हुए थी ।
मुर्शिद ने जैसे ही उसके माथे को छुआ उसे मुर्शिद साहब के होने अहसास हो गया और उसने आँखें खोल दी और बिलखते हुए मुर्शिद के पैरों से लिपट गई और बोली-" मुझे बचाएं हुजूर , मुझे बचाए हुजूर , सब बर्बाद हो गया।
मुर्शिद साहब ने उसे यह यकीन दिलाया कि अब वो बेफिक्र रहे और कहा-""सब ठीक हो जायेगा और अब सब कुछ मैं सम्भाल लूँगा ""।
इतना सुनना था कि कसील के चेहरे पर सुकून साफ़ दिखने लगा था और अब उसको बहुत हद तक यह यकीन हो चुका था कि अब सब ठीक हो जाएगा क्यूंकि अब मुर्शिद साहब ने बोल दिया था ।
अब उसने थोड़े आराम की सांस ली क्योंकि जो भी मुर्शिद साहब कहेंगे वही बाबा करेंगे इस पर उसको पूरा यकीन था।
रात हो चुकी थी मुर्शिद साहब ने भी वही पर आराम करने और रात को वहीं ठहरने के लिए कह दिया , और लाइस से बोल दिया कि पुरसुकून होकर सो जायें सभी लोग, कल इस मसले पर बात करेंगे।
झोंपड़ी में ही कसील ने मुर्शिद की आरामगाह बना दी ।
तमाम खानदान के सारे लोग बाहर ही सो गए कसील अपनी बहन वसील के पास सो गई और लाइस जमींन पर ही अलहदा हाथ सिर के नीचे रखकर लेटा था ।
नींद तो उसकी अब शायद जिंदगीभर के लिए जा चुकी थी ।
बेचारा आसमान के चमकते सितारों को देख रहा था, सितारे क्या देख रहा था सितारों में अपनी जिंदगी के सुकून को तलाश करने की कोशिश कर रहा था।
कसील के किसी अन्जान लड़के के साथ गुज़रे हुए माजी को सोच रहा था और सुबह होने का इंतजार कर रहा था क्यूंकि उसने इरादा कर लिया था कि कल दिन निकलते ही कसील का क़त्ल कर देगा और अपने खानदान की गंदगी को साफ़ कर देगा ।
आधी रात गुज़र चुकी थी।
उधर अचानक लाइस की छोटी बेटी वसील की आंख खुल गई और उसने पाया की कसील जोकि उसके पास ही सो रही थी वो अब वहां नही थी वसील डर गई उसे लगा कि कहीं उसकी बहन भाग ना गई हो बाबा के डर से ।
इसी खौफ़ की वजह वो उठी और अपने बाबा के पास गई और बोली- ""बाबा बहन नहीं हैं , वो मेरे पास ही सोई थी मगर अब नहीं हैं "" ।
लाइस और उसकी बेटी , उन दोनों ने आस पास के सारे जंगल को छान मारा लेकिन कसील कहीं नहीं मिली । थक हार कर सोचा उसने कि यह खबर मुर्शिद साहब को दूँ ताकि कोई हल वही तलाश करें ।
उसके गायब होने की खबर देने के लिए झोंपड़ी के अंदर दाखिल हुआ । घुसते ही उसने सामने कुछ ऐसा देखा कि जिसे देखते ही एक दम से गश खाकर गिर पड़ा।
उसने देखा कसील मुर्शिद साहब की बाहों में लेटी थी और दोनों के कपड़े बदन के बजाए अलाहिदा उतरे हुए थे।
दोनों एक दूसरे को चूमने में इस क़दर मशगूल थे कि उनको लाइस के आने का भी अहसास नही हुआ, लाइस यह देखकर सारा माजरा समझ चुका था और इस बात का उस पर ऐसा सदमा हुआ कि बेचारे पर दिल का दौड़ा पड़ गया ।
जो बच्चा कसील के पेट में था वो उसी मुर्शिद का था जो उसे बेटी मानता था उसी ने कसील को अपने जाल में फंसाया था,
बाद में कसील भी उससे इश्क करने लगी थी और उसका इश्क़ इस हद तक जा चुका था कि अब उसके दिमाग से बाप की मोहब्बत तक निकल चुकी थी।
और जिसमें फँसकर वो 12 साल और 55 साल के बीच का फर्क़ भूल चुकी थी।
भूल चुकी थी कि बूढ़ा इन्सान अगर इश्क के नाम पर ऐसी हरक़त करेगा तो उससे दूर होना चाहिये या पास?
कसील उसे हक़ीकत में इश्क़ करती थी जिसके बगैर वो एक रात तक ना गुज़ार पाती थी ।
लेकिन मुर्शिद सिर्फ़ उसको इस्तेमाल कर रहा था अपनी हवस मिटाने के लिए।
कसील के इश्क ने आज उसके बाप को कबर तक पहुँचा दिया था।
वसील ने जब बाप को ज़मीन पर गिरते हुए पाया तो उसकी चीख निकल पड़ी, चीख सुनते ही उसकी वीवी भी वही आ गई और वसील अपनी माँ के साथ मिलकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे लेकिन उस बेचारी को क्या पता था कि अब उसका बाप कभी नहीं उठेगा। लाइस अब दुनिया से जा चुका था।
उधर मुर्शिद ने जब यह देखा तो फ़ौरन वहां से भाग निकला ।
वसील का दिल नहीं मानता था कि उसका बाप मर गया है और इसलिये आधी रात ही दूसरे क़बीले से हक़ीम को बुलाने निकल पड़ी, ना उसको जंगल की परवाह थी ना किसी जानवर का डर , बस भागती हुई चली जाती थी क्यूंकि वो कसील की तरह बाप से दिखावटी प्यार नहीं करती थी वो सच में अपने बाप को चाहती थी दुनिया में सबसे ज़्यादा।
और दूसरी तरफ़ कसील अपने बाप को मुर्दा पड़े हुए देखती रही।
उधर वसील अभी अपने क़बीले से थोड़ी दूर ही निकली थी कि अचानक उसने देखा उसके सामने कोई खड़ा है। अन्धेरे में उसकी पहचान कर पाना मुश्किल था, लेकिन जैसे ही वो उसके क़रीब आया और उसका हाथ पकड़ा वो फ़ौरन समझ गई कि यह वही शख़्स था।
यानि वही मुर्शिद था।
वो दरिंदा वसील को पकड़कर जंगल में ले गया , वसील चीखी चिल्लायी मगर छोटी सी नादान बच्ची (जिसकी उम्र अभी सिर्फ़ आठ साल ही होगी )को रहम न आया और लेजाकर उसको अपनी हवस का शिकार बनाकर गला घोंटकर मार डाला और पास के दरिया फैंक दिया ।
उधर जब लाइस की वीवी ने देखा कि उसका शौहर इस दुनिया से जा चुका है तो उसने खंजर से खुदकुशी कर ली ।
कसील ने जब देखा कि माँ भी मर गई है तो फ़ौरन वहां से भाग गई।
कबीले वालों ने बच्चों के रोने की आवाज़ सुनी तो दौड़कर आए और झोंपड़ी में घुसे तो देखा लाइस और उसकी वीवी दोनो जमीन पर मुर्दा पड़े हैं और दोंनो छोटे बच्चे बाबा बाबा कहकर बिलख रहे थे ।
लोग यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर यह हुआ क्या है ? कुछ कह रहे थे कि लुटेरों ने हमला किया होगा औरतें कई कुछ और।
सुबह हो चुकी थी क़बीले के लोगों की भीड़ लाइस की झोंपड़ी में रात ही से थी, बिलआखिर क़बीले वालों ने लाइस और उसकी वीवी को सुपुर्द ए खाक किया।
जब क़बीले में किसी को भी मालूम नही हुआ कि आखिर यह सब कैसे हुआ था ?
चूँकि वो उन्हीं में से एक बन चुकी थी इसीलिए वो अब सिर्फ़ कभी कभी कबीले आती थी ।
जब आती तो मुर्शिद साहब के साथ ही आती और थोड़े वक़्त ठहरती और उन्हीं के साथ वापस चली जाती ।
यह सब यूँही चलता रहा , वक़्त गुज़रता गया ।
इधर अब लाइस को कसील के ब्याह की फ़िक्र और भी ज़्यादा होने लगी, क्योंकि वो एक नेक और इज़्ज़तदार इंसान था, तो फ़िक्र होना उसके लिए वाजिब था।
उसी दौरान कसील की माँ की तबियत खराब हो गई , इसलिए कसील को कबीले आना पड़ा कुछ रोज़ के लिए ।
उन्हीं दिनो जब वो क़बीले में माँ का ख्याल रखने आई थी तभी एक दिन अचानक कसील की तबियत भी एक दम से बहुत बिगड़ गई , उसकी तबियत को सुनकर कबीले के लोगों में हडकंप मच गया ।
वसील उसकी छोटी बहन उसका सर दबाने लगी, और माँ पैर मसलने लगी ।
उसके बाप लाइस को जब यह खबर हुई तो मानो पागल सा हो गया, उसे समझ ही नहीं आया कि यह आखिर हो क्या गया है ?
आनन फानन में लाइस हकीम को बुलाने दौड़ पड़ा जो कि दूसरे क़बीले में था , बेचारा झोंपड़ी से निकला नंगे पाँव ही दौड़ना शुरू कर दिया ।
ठंड की काली रातों में खेत की मेंड पर भगते हुए उसका पैर बार बार फिसल जाता , फिसलकर गिर जाता, उठता और फिर गिर जाता ,
यह कमज़ोरी कोई महनत से होने वाली कमजोरी नहीं थी बल्कि कसील की तबियत बिगड़ने पैदा हुई कमज़ोरी थी, लेकिन न जाने कहां से उसके अंदर उठ खड़े होने की बार बार हिम्मत पैदा हो जाती थी।
शायद आज वो डर गया था।
डर गया था इस बात से कि जो उसका गुरुर था जिसे देखकर वो खुदा का शुक्र अदा करता था आज कहीं वो रहमत उससे छिन ना जाए यानि कसील को कहीं कुछ ना हो जाए ।
शायद यही ख्याल उसे दहशत दे रहे थे, और इसलिए गिरता गिराता आँसुओं को अस्तीन से पोंछता हुआ दौड़ा चला जाता था। सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि वो एक बाप था बल्कि इसलिए भी क्योंकि कसील उसकी सबसे बड़ी औलाद होने के साथ साथ उसकी सबसे ज़्यादा चहीती बेटी थी।
लाइस हकीम के दरवाजे पर पहुँचा ' अन्दर से किसी ने कुण्डी खोली और भीतर बुला लिया, लाइस जाकर सीधा हकीम के सामने हाथ जोड़कर गुजारिश करता हुआ बोला ...'' जनाब मैं मर रहा हूं मुझे बचाइए ।
हकीम ने जब लाइस की हालत देखी तो उसे पानी पिलाया और अहवाल पूछा उसने कसील की तबियत का हाल हकीम साहब को बताया।
हकीम फ़ौरन उसके साथ चल दिया, बेचारा लाइस छोटे बच्चों की तरह सिस्किया लेकर आँसू पोंछता और अपने मुर्शिद साहब का नाम पुकारता और मदद आक़ा मदद की गुहार सारे रास्ते लगाता जाता , क्यूंकि उन्हीं के हाथो के बोसे ले लेकर तो उसको आराम आता था। हकीम और लाइस दोनों क़बीले पहुँच चुके थे ।
लाइस बाहर ही रुक गया, हकीम जी ने कसील की तबियत को परखा, थोड़ी देर हालात का जायजा लेने के बाद वो झोंपड़ी से बाहर निकल आए और लाइस जो की दरख्त से टेक लगाकर बैठा रो रहा था के पास आए और उसके कांधे पर हाथ रखकर बहुत अफ़सोस के साथ बोले - " लाइस तुम्हें बहुत हिम्मत से काम लेना होगा संभालो खुद को...... .."' ।
लाइस ने पूछा - "ठीक तो है मेरी बच्ची "?
हक़ीम ने जवाब दिया कि बेटी ठीक है लेकिन ..........
लाइस ने घबराते हुए पूछा -" हकीम साहब जल्दी बताइए मेरी बेटी ठीक तो है ना?
हकीम ने कहा-" कसील के पेट मैं बच्चा है "।
लाइस चौक गया घबराकर बोला ... क्या ?
हकीम ने कहा वो माँ बनने वाली है ।
लाइस अभी तक यह समझ नाही पा रहा था की यह हकीम बोल क्या रहा है ?
उसने जज़वाती रवैये में हकीम से कहा... जनाब आपको पता भी है आप क्या कह रहे हैं, दिमाग तो ठीक है आपका ?
हकीम ने उसे समझाते हुए कहा कसील मेरा जो काम था मैं कर चुका हूं अब इजाज़त चाहूंगा , और यह कहते हुए हकीम अपने कबीले की ओर चला गया।
लाइस उसे बहुत दूर तक देखता रह गया ....और अभी भी उसे हकीम साहब की बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था।
बहुत देर तक वो उसी तरह बेसुध पड़ा रहा ।
लेकिन अब उसकी आंखों के आंसू सुख चुके थे,
७ उसने खुद को संभला और कसील के पास गया और सारे लोगो को झोंपड़ी से निकाल कर कसील के पैरों पर गिरकर बोला ......""बेटी ""
'कह दे कि यह सब झूठ बोला है उस हकीम ने'।
कसील ने जब उसके यह अल्फाज सुने और बाप को बेहाल देखा तो उसे समझने में देर नहीं लगी कि सब कुछ तबाह हो गया है और रोते हुए अपने बाप के कदमो से लिपट गई।
और माफ़ी की गुहार शूरू कर दी , लाइस समझ चुका था कि जो भी हकीम ने कहा वही हक़ीक़त थी।
बहुत देर तलक वो यूँ ही बेजान सा खड़ा रहा ।
लाइस ने खुद को संभला और यह जानने की कोशिश करनी चाही कि कौन है वो शख्स जिसने यह किया है, गुस्से में उसने कसील से जानना चाहा ।
लाइस समझता था कि उसकी बच्ची साफ़ थी, बेटी को किसी ने बहकाया होगा वरना वो बहुत नैक थी , लेकिन उसका गुस्सा उस वक़्त और भी भड़क गया जब उसने कसील के मुँह से सुना कि यह जो भी हुआ सब कसील की मर्ज़ी से हुआ था उसने बताया कि वो दोनों एक दूसरे से इश्क़ करते हैं एक दूसरे के बगैर एक पल भी नहीं रह सकते ।
कसील का बर्ताव आज निहायत ही फहिशाना था जिसको देखकर लाइस समझ चुका था कि उसने अपनी बेटी से हद से ज़्यादा उम्मीद लगा रखी थी जिसका खामियाज़ा आज उसके सामने था , उसने जब ऐसे अल्फाज़ सुने तो उसने कसील को इतनी जोर का तमाचा जड़ा के एक तमाचे में ही कसील बहोश हो गई , या फ़िर बेहोश होने का झूठा दिखावा करने लगी।
लाइस ने चाहा अभी कत्ल कर दूँ लेकिन इज्ज़त कि खातिर वो अगले मौके का इन्तेज़ार करने लगा।
अब उसने कसील को जान से मारने पक्का
इरादा भी कर लिया था लेकिन सही मौके का इंतजार को सोचकर उसी गुस्से में वो झोंपड़ी से निकला और जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपनी ज़िंदगी को कोसता रहा।
तभी उसको अपने मुर्शिद साहब का ख्याल आया , जोकि हर बार उसे हर मुश्किल से बाहर निकाल लेते थे आज वो उनको बहुत याद कर रहा था क्युंकि आज ही हक़ीकत में उसको किसी सहारे की बेहद ज़रूरत थी और इसी तरह वो अपने मुर्शिद से मदद मुर्शिद मदद पुकारता जाता और रोता जाता ।
उधर कबीले के ही किसी शख़्स ने कसील की तबियत खराब होने की खबर उन मुर्शिद साहब के पास पहले ही पहुँचा दी थी इसलिए वो भी अपनी खानकाह से उसी लम्हा निकल चुके थे । अपने घोड़े पर इतनी तेज़ रफ़्तार से किया गया यह उनका पहला सफ़र था उनकी 55 साला जिंदगी में।
यह तेज़ी शायद इसलिए थी क्यूंकि वो भी उसको अपनी बेटी से ज़्यादा प्यार करते थे और उसी तेज़ी से वो शाम होने से पहले ही कबीले पहुंच गए ।
जैसे ही लाइस की नज़र अपने मुर्शिद साहब पर पड़ी भागकर उनके पैरों में गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा, मुर्शिद साहब ने उसे उठाया और एक तरफ़ दरख्त के पास दोंनो बैठ गए।
लाइस ने उन्हें सारे हाल अहवाल से वाकिफ़ कराया।
मुर्शिद साहब ने लाइस को काफ़ी देर दिलासा दिलाया समझाया और कसील को देखने झोंपड़ी में चले गए, झोंपड़ी में दाखिल होते मुर्शिद साहब ने पाया कि कसील बेसुध ज़मीन पर पड़ी थी या बेहोशी का दिखावा किए हुए थी ।
मुर्शिद ने जैसे ही उसके माथे को छुआ उसे मुर्शिद साहब के होने अहसास हो गया और उसने आँखें खोल दी और बिलखते हुए मुर्शिद के पैरों से लिपट गई और बोली-" मुझे बचाएं हुजूर , मुझे बचाए हुजूर , सब बर्बाद हो गया।
मुर्शिद साहब ने उसे यह यकीन दिलाया कि अब वो बेफिक्र रहे और कहा-""सब ठीक हो जायेगा और अब सब कुछ मैं सम्भाल लूँगा ""।
इतना सुनना था कि कसील के चेहरे पर सुकून साफ़ दिखने लगा था और अब उसको बहुत हद तक यह यकीन हो चुका था कि अब सब ठीक हो जाएगा क्यूंकि अब मुर्शिद साहब ने बोल दिया था ।
अब उसने थोड़े आराम की सांस ली क्योंकि जो भी मुर्शिद साहब कहेंगे वही बाबा करेंगे इस पर उसको पूरा यकीन था।
रात हो चुकी थी मुर्शिद साहब ने भी वही पर आराम करने और रात को वहीं ठहरने के लिए कह दिया , और लाइस से बोल दिया कि पुरसुकून होकर सो जायें सभी लोग, कल इस मसले पर बात करेंगे।
झोंपड़ी में ही कसील ने मुर्शिद की आरामगाह बना दी ।
तमाम खानदान के सारे लोग बाहर ही सो गए कसील अपनी बहन वसील के पास सो गई और लाइस जमींन पर ही अलहदा हाथ सिर के नीचे रखकर लेटा था ।
नींद तो उसकी अब शायद जिंदगीभर के लिए जा चुकी थी ।
बेचारा आसमान के चमकते सितारों को देख रहा था, सितारे क्या देख रहा था सितारों में अपनी जिंदगी के सुकून को तलाश करने की कोशिश कर रहा था।
कसील के किसी अन्जान लड़के के साथ गुज़रे हुए माजी को सोच रहा था और सुबह होने का इंतजार कर रहा था क्यूंकि उसने इरादा कर लिया था कि कल दिन निकलते ही कसील का क़त्ल कर देगा और अपने खानदान की गंदगी को साफ़ कर देगा ।
आधी रात गुज़र चुकी थी।
उधर अचानक लाइस की छोटी बेटी वसील की आंख खुल गई और उसने पाया की कसील जोकि उसके पास ही सो रही थी वो अब वहां नही थी वसील डर गई उसे लगा कि कहीं उसकी बहन भाग ना गई हो बाबा के डर से ।
इसी खौफ़ की वजह वो उठी और अपने बाबा के पास गई और बोली- ""बाबा बहन नहीं हैं , वो मेरे पास ही सोई थी मगर अब नहीं हैं "" ।
लाइस और उसकी बेटी , उन दोनों ने आस पास के सारे जंगल को छान मारा लेकिन कसील कहीं नहीं मिली । थक हार कर सोचा उसने कि यह खबर मुर्शिद साहब को दूँ ताकि कोई हल वही तलाश करें ।
उसके गायब होने की खबर देने के लिए झोंपड़ी के अंदर दाखिल हुआ । घुसते ही उसने सामने कुछ ऐसा देखा कि जिसे देखते ही एक दम से गश खाकर गिर पड़ा।
उसने देखा कसील मुर्शिद साहब की बाहों में लेटी थी और दोनों के कपड़े बदन के बजाए अलाहिदा उतरे हुए थे।
दोनों एक दूसरे को चूमने में इस क़दर मशगूल थे कि उनको लाइस के आने का भी अहसास नही हुआ, लाइस यह देखकर सारा माजरा समझ चुका था और इस बात का उस पर ऐसा सदमा हुआ कि बेचारे पर दिल का दौड़ा पड़ गया ।
जो बच्चा कसील के पेट में था वो उसी मुर्शिद का था जो उसे बेटी मानता था उसी ने कसील को अपने जाल में फंसाया था,
बाद में कसील भी उससे इश्क करने लगी थी और उसका इश्क़ इस हद तक जा चुका था कि अब उसके दिमाग से बाप की मोहब्बत तक निकल चुकी थी।
और जिसमें फँसकर वो 12 साल और 55 साल के बीच का फर्क़ भूल चुकी थी।
भूल चुकी थी कि बूढ़ा इन्सान अगर इश्क के नाम पर ऐसी हरक़त करेगा तो उससे दूर होना चाहिये या पास?
कसील उसे हक़ीकत में इश्क़ करती थी जिसके बगैर वो एक रात तक ना गुज़ार पाती थी ।
लेकिन मुर्शिद सिर्फ़ उसको इस्तेमाल कर रहा था अपनी हवस मिटाने के लिए।
कसील के इश्क ने आज उसके बाप को कबर तक पहुँचा दिया था।
वसील ने जब बाप को ज़मीन पर गिरते हुए पाया तो उसकी चीख निकल पड़ी, चीख सुनते ही उसकी वीवी भी वही आ गई और वसील अपनी माँ के साथ मिलकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगे लेकिन उस बेचारी को क्या पता था कि अब उसका बाप कभी नहीं उठेगा। लाइस अब दुनिया से जा चुका था।
उधर मुर्शिद ने जब यह देखा तो फ़ौरन वहां से भाग निकला ।
वसील का दिल नहीं मानता था कि उसका बाप मर गया है और इसलिये आधी रात ही दूसरे क़बीले से हक़ीम को बुलाने निकल पड़ी, ना उसको जंगल की परवाह थी ना किसी जानवर का डर , बस भागती हुई चली जाती थी क्यूंकि वो कसील की तरह बाप से दिखावटी प्यार नहीं करती थी वो सच में अपने बाप को चाहती थी दुनिया में सबसे ज़्यादा।
और दूसरी तरफ़ कसील अपने बाप को मुर्दा पड़े हुए देखती रही।
उधर वसील अभी अपने क़बीले से थोड़ी दूर ही निकली थी कि अचानक उसने देखा उसके सामने कोई खड़ा है। अन्धेरे में उसकी पहचान कर पाना मुश्किल था, लेकिन जैसे ही वो उसके क़रीब आया और उसका हाथ पकड़ा वो फ़ौरन समझ गई कि यह वही शख़्स था।
यानि वही मुर्शिद था।
वो दरिंदा वसील को पकड़कर जंगल में ले गया , वसील चीखी चिल्लायी मगर छोटी सी नादान बच्ची (जिसकी उम्र अभी सिर्फ़ आठ साल ही होगी )को रहम न आया और लेजाकर उसको अपनी हवस का शिकार बनाकर गला घोंटकर मार डाला और पास के दरिया फैंक दिया ।
उधर जब लाइस की वीवी ने देखा कि उसका शौहर इस दुनिया से जा चुका है तो उसने खंजर से खुदकुशी कर ली ।
कसील ने जब देखा कि माँ भी मर गई है तो फ़ौरन वहां से भाग गई।
कबीले वालों ने बच्चों के रोने की आवाज़ सुनी तो दौड़कर आए और झोंपड़ी में घुसे तो देखा लाइस और उसकी वीवी दोनो जमीन पर मुर्दा पड़े हैं और दोंनो छोटे बच्चे बाबा बाबा कहकर बिलख रहे थे ।
लोग यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर यह हुआ क्या है ? कुछ कह रहे थे कि लुटेरों ने हमला किया होगा औरतें कई कुछ और।
सुबह हो चुकी थी क़बीले के लोगों की भीड़ लाइस की झोंपड़ी में रात ही से थी, बिलआखिर क़बीले वालों ने लाइस और उसकी वीवी को सुपुर्द ए खाक किया।
जब क़बीले में किसी को भी मालूम नही हुआ कि आखिर यह सब कैसे हुआ था ?
बस इसी बात का फायदा उठाकर कसील अपने क़बीले वापस आ गई और जो क़बीले वालों के दिमाग में था उसी के जैसी एक झूठी कहानी बनाई और बताया कि कुछ लुटेरे आये थे जिन्होने बाबा और माँ को मार दिया बड़ी मुश्किल से मैं वहाँ से भागने में कामयाब हुई , लोगों ने मुर्शिद साहब के बारे में मालूम किया तो उसने यह बोल दिया कि उनको ज़रूरी काम था जिस वजह से वो रात ही को वहां से चले गए थे। वसील के बारे में बता दिया कि उसको अपने साथ ले गए ।
फ़िर उसने क़बीले के ही किसी शख्स से मुर्शिद जी को बुलवा लिया, मुर्शिद ने भी आकर ऐसी अदाकारी से काम लिया कि मानो उसको कुछ पता ही नही।
वो इस हादसे को लेकर खुद को बहुत परेशान ज़ाहिर कर रहा था
तमाम क़बीला इस हादसे से सदमे में था।
मुर्शिद ने क़बीले वालों के सामने नई चाल चली और उनके सदमे का फायदा उठाते हुए बोला- मेरे चाहने वालों आप जानते हैं कि इन बच्चों की परवरिश का मामला अब मुश्किल हो गया है इसलिए मैं आज ही से इनकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ और आप जानते हैं कि कसील अब जवान होने लगी है तो अगर यह मेरे पास रहेगी तो शरीयत के खिलाफ़ होगा , और मैं कसील को तन्हा नही छोड़ सकता।
इसलिए मैने सोचा है कि मैं उससे निकाह करूंगा और ज़ायज़ तरीक़े से उसकी और उसके भाईयों की देखभाल करूंगा ।
क़बीले ने जब मुर्शिद की बातों को सुना तो उन्हें बहुत अच्छा लगा और कुछ इस मसले के मुताल्लिक जो हदीस और वाक़ियत मुर्शिद ने सुना दी थी उनसे उन पर बहुत असर हुआ , और सब ने इस पर खुशी ज़ाहिर की ।
निकाह के लिए सदर क़बीला को बुला लिया गया और निकाह पढ़ा गया, दोनों बहुत खुश थे यही तो वो चाहते थे।
अब मुर्शिद रोजाना गुरूब अफताब होने से पहले कसील के क़बीले आ जाते थे और सुकून से अपनी जिंदगी गुज़रते थे, उनकी पहली वीवी ने उनसे तलाक़ ले लिया था और अपने बच्चो के साथ वो मायके रहने लगी थीं ।
उसी दौरान किसी और क़बीले के साहिबे इरादा शख्स की बेटी की तबियत खराब हो गई , जिसका नाम मीलास था,।
मीलास जिसकी उम्र 9 साल होगी।
मुर्शिद ने इलाज के बहाने उसके बाप के ज़रिए अपनी खन्काह में मीलास को बुलवा लिया ।
और कसील से उस छोटी लड़की मीलास के बारे में कुछ भी नहीं बताया था सब कुछ छिपाए रखा था उसने जबकि वो अब उसकी वीवी थी।
अब आगे क्या हुआ होगा इसको अक़्ल वाले खुद समझ सकते हैं ..............
लेखक-
कलीम पाशा शादरान
वो इस हादसे को लेकर खुद को बहुत परेशान ज़ाहिर कर रहा था
तमाम क़बीला इस हादसे से सदमे में था।
मुर्शिद ने क़बीले वालों के सामने नई चाल चली और उनके सदमे का फायदा उठाते हुए बोला- मेरे चाहने वालों आप जानते हैं कि इन बच्चों की परवरिश का मामला अब मुश्किल हो गया है इसलिए मैं आज ही से इनकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ और आप जानते हैं कि कसील अब जवान होने लगी है तो अगर यह मेरे पास रहेगी तो शरीयत के खिलाफ़ होगा , और मैं कसील को तन्हा नही छोड़ सकता।
इसलिए मैने सोचा है कि मैं उससे निकाह करूंगा और ज़ायज़ तरीक़े से उसकी और उसके भाईयों की देखभाल करूंगा ।
क़बीले ने जब मुर्शिद की बातों को सुना तो उन्हें बहुत अच्छा लगा और कुछ इस मसले के मुताल्लिक जो हदीस और वाक़ियत मुर्शिद ने सुना दी थी उनसे उन पर बहुत असर हुआ , और सब ने इस पर खुशी ज़ाहिर की ।
निकाह के लिए सदर क़बीला को बुला लिया गया और निकाह पढ़ा गया, दोनों बहुत खुश थे यही तो वो चाहते थे।
अब मुर्शिद रोजाना गुरूब अफताब होने से पहले कसील के क़बीले आ जाते थे और सुकून से अपनी जिंदगी गुज़रते थे, उनकी पहली वीवी ने उनसे तलाक़ ले लिया था और अपने बच्चो के साथ वो मायके रहने लगी थीं ।
उसी दौरान किसी और क़बीले के साहिबे इरादा शख्स की बेटी की तबियत खराब हो गई , जिसका नाम मीलास था,।
मीलास जिसकी उम्र 9 साल होगी।
मुर्शिद ने इलाज के बहाने उसके बाप के ज़रिए अपनी खन्काह में मीलास को बुलवा लिया ।
और कसील से उस छोटी लड़की मीलास के बारे में कुछ भी नहीं बताया था सब कुछ छिपाए रखा था उसने जबकि वो अब उसकी वीवी थी।
अब आगे क्या हुआ होगा इसको अक़्ल वाले खुद समझ सकते हैं ..............
लेखक-
कलीम पाशा शादरान
21 जनवरी 2022 ( जुमा )
(Completed date )
वक़्त -2:15 am रात
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वक़्त -2:15 am रात
Thank you
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ReplyDeleteHidden Reality 😕
ReplyDeleteNice
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