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सर जी, ओ सर जी , सर जी

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                        सर जी , ओ  सर जी , सर  जी                                        ( अफसाना   )                                             लेखक                               (    कलीम पाशा शादरान  ) मैं हमेशा अकेला रहने का आदी हूं , लेकिन कुछ दिन पहले  मैंने सोचा , आज उन लोगों के पास थोड़ा वक़्त बिताया जाए जिन्हें फ़ालतू लोगों में गिना जाता  हैं  क्योंकि वो  लोग हमेशा चौराहे पर बैठे  रहते हैं और वहाँ से गुज़रने वालों पर तनक़ीद करते रहते हैं। मैंने सोचा आज उन्हीं के पास बैठा जाए और कुछ नया तजुर्बा हासिल किया जाए । इसी इरादे से मैं अपने दोस्त  के साथ उनकी टोली में जाकर शामिल हो गया ...

शक -: अज़ाब , ज़ुल्म और क़ातिल

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                         अफ़साना  ( शक  - : अज़ाब , ज़ुल्म  और   क़ातिल  ) कपुचलफारज कस्बे का एक बड़ा गॉव था । वहां अलग अलग जाति धर्म के लोग रहते थे आप अगर उसे छोटा हिंदुस्तान कह दें तो गलत नही होगा। लोग अपने अपने करोबार के हिसाब से रोज़ मर्रा के काम करते थे। कस्बे से लगभग मील भर की दूरी होगी उस गांव की, गांव को जाने वाला रास्ता बिल्कुल कच्चा था रास्ते में कंटीली झाड़ियां थी ऊंचे नीचे टीले अगर बारिश हो जाए तो जाना मुश्किल हो जाए । सफ़र के लिए बैलगाड़ियां चलती थी जो कि कस्बे से गांव तक आने के सात आने लेते थे , लेकिन उन बैलगाड़ियों पर सफर करना बहुत महंगा साबित होता था , जो कोई सवारी पर बैठता राह के गड्ढे उसे अगले आठ दिन तक बिस्तर से नहीं उठने देते थे। गाँव के शुरु में ही एक ताल था जिसमें सारे गाव का पानी आता था जो कि निहायत ही गंदा था लेकिन इकलौता ताल था इसलिए सभी को पसंद था। ज़मीन्दारी के लालच वाले  दौर में उसका सलामत रहना एक मोज्ज़ा ही लगता था क्योंकि उस गांव के मुखिया जी ने गांव...